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श्राचार्य विजयप्रकाशचन्द्र सूरि
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२०२३ चौमासा हस्तिनापुर में, २०२४ चौमासा लुधियाना में, वि. सं. २०२५ आचार्य श्री विजय समुद्रसूरि के साथ बीकानेर में किया और प्राचार्य श्री द्वारा गणि पद की प्राप्ति की । वि. सं. २०२७ में चौमासा आचार्यश्री के साथ बालकेश्वर (बम्बई) में । वरली ( बम्बई ) में प्राचार्य श्री द्वारा मुनि प्रकाशविजय तथा मुनि सुरेन्द्रविजय जी को उपाध्याय पद प्राप्ति । तथा मुनि बलवंतविजय, मुनि जयविजय को आचार्य श्री द्वारा पंन्यास व गणि पदों की प्राप्ति । एवं पूना में जसराज को दीक्षा देकर अपना चौथा शिष्य बनाया। नाम प्रवीणविजय रखा । इसको बड़ी दीक्षा अंधेरी में दी । वि. सं. २०२८ का चौमासा मलाड़ में, २०२६ का चौमासा झाडोली (अपनी जन्म नगरी ) में किया ।
वि.सं. २०३० का चौमासा हस्तिनापुर में । उपधान तप कराया। श्री ऋषभ -विहार वृद्धाश्रम की स्थापना की । श्री विजयानन्दसूरि तथा श्री विजयवल्लभसूरि जी के स्टेच्यु उच्चतर माध्यमिक स्कूल के सामने अगल-बगल में आमने-सामने अलग-अलग छत्रियों में स्थापित किये । विद्यालय की दक्षिण दिशा में विद्यालय की बाऊंडरी के अन्दर ही एक अलग कमरे में श्री ऋषभदेव तथा श्रेयांसकुमार वर्षीय तप का पारणा करने कराने की दो प्रतिमानों की स्थापना कराई ।
वि. सं. २०३१ में कंपिला जी के मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर उसकी प्रतिष्ठा कराई । वि. सं. २०३१ में श्री हस्तिनापुर में अपने गुरु श्री पूर्णानन्द सूरि से वासक्षेप मंगवा कर आचार्य पद प्राप्त किया नाम विजयप्रकाशचन्द्र सूरि हुआ ।
वि. सं. २०३१ का चौमासा किनारी बाजार दिल्ली में । पश्चात् इलाहाबाद के मंदिर की प्रतिष्ठा, इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराने के बाद - वि सं. २०३२ का चौमासा अम्बाला शहर में । चौमासे के बाद अपने गुरु प्राचार्य पूर्णानन्द सूरि से मिलने के लिए राजस्थान की ओर विहार किया । सोजत में अभी सात मील पहुंचने में बाकी थे कि रास्ते में ही हृदयगति का अवरोध हो जाने से आपका स्वर्गवास हो गया। आपके मृतक शरीर का दाहसंस्कार सोजत में किया गया । उस समय पूर्णानन्द सूरि आपके स्वर्गवास होने के स्थान से २२ मील की दूरी पर विराजमान थे ।
अन्य कार्य
(१) मेरठ से हस्तिनापुर का छरी पालता संघ निकाला । वि० सं० २०१७ में ।
(२) फ़रुखाबाद, लखनऊ, पुरिमताल ( इलाहाबाद), कौशांबी, माकड़ी कंपिला जी आदि श्रनेक जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़े जैनमंदिरों का जीर्णोद्धार कराया और उन मंदिरों की सुन्दर व्यवस्था कराई। मंदिरों के साथ जो ज़मीनें थीं, उनपर लोगों ने अनधिकार कब्जे कर रखे थे। उन जमीनों से उनके अधिकार समाप्त कराकर मंदिरों के ट्रस्टियों को दिलाई और उत्तरप्रदेश तीर्थोद्धार समिति की स्थापना कर उसके द्वारा मंदिरों की सारसंभाल करवाई ।
(३) युवकों को संगठित कर उनमें सदाचार तथा धर्मसंस्कार दिये ।
(४) पंजाब में उपधान तप करवाकर पहल की ।
(५) पंजाब के अनेक नगरों में कन्याओं के लिए सिलाई शिक्षण स्कूल खुलवाकर - जैन समाज की लड़कियों को शिक्षित कराया ।
श्राचार्य श्री कैलाशसागर जी
पंजाब प्रदेश में जगरांवां नगर ( जिला लुधियाना ) में मोगला गोत्रीय अरोड़ा जाति के श्री
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