Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 549
________________ ५०३ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म करते हुए गुरुदेव के साथ लाहौर में जामिले और वि०सं० १९८१ का चौमासा लाहौर में गुरुचरणों में ही किया । इस चतु मास में श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब का अधिवेशन भी सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ । उपाध्याय पदवी का लाभ श्री जैनसंघ पंजाब श्री विजयानन्द सूरि जी के स्वर्गवास हो जाने के बाद से ही इस कोशिश में रहा कि मुनि श्री वल्लभविजय जी को प्राचार्य पद से विभूषित कर स्वर्गवासी गुरुदेव का पट्टधर बनाया जावे । परन्तु अनेक बार प्रयास करने पर भी आप सदा इस पद को स्वीकार करने से इन्कार करते रहे । परन्तु पंजाबी भक्तों ने धैर्य नहीं छोड़ा । लगातार कोशिश करते ही रहे । श्राखिरकार लाहौर में वि०सं० १९८१ मार्गशीर्ष सुदी ५ के दिन प्रातःकाल ठीक ७ बजे सकल श्रीसंघ पंजाब ने श्राप को आचार्य पदवी से अलंकृत किया। आप के प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के बाद ही पंन्यास सोहनविजय जी गणि को उपाध्याय पद से विभूषित किया गया । गुजरांवाला में लाहौर से विहार कर ग्राप गुरुदेव के साथ ही गुजरांवाला में पधारे । यहाँ पर आचार्यश्री के प्रेरणादायक उपदेश और आप के अनथक शुभ प्रयत्न और गुरुभक्त श्री पंन्यास ललितविजय जगण आदि के सहयोग से विक्रम संवत् १९८१ माघ सुदि पंचमी को गुजरांवाला में श्री श्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब की स्थापना हुई । गुरुकुल के प्रचार के लिये आपने गुरुदेव की आज्ञा से विहार किया । पसरूर, नारोवाल, सन सतरा होते हुए जम्मू पधारे। यहां एक मास की स्थिरता के बाद स्यालकोट पधारे । एक मास तक आप यहाँ विराजमान रहे और चैत्र सुदी १३ को भगवान महावीर की जयंति आप ने बड़ी धूम-धाम से मनाई । चैत्र शुक्ला १५ के दिन यहां के कई स्थानकमार्गी परिवारों ने श्राप से वासक्षप लेकर श्वेतांबर धर्म को स्वीकार किया । जिन में ( १ ) लाला नत्थुमल जी सुपुत्र लाला हरजसराय, (२) लाला लाभामल, (३) लाला खजानचीलाल बांठिया, (४) लाला अमरनाथ, (५) लाला सरदारीलाल, (६) लाला मेलामल चौधरी, (७) लाला लक्ष्मीचन्द, (८) लाला बिशनचन्द, (e) लाला देवीदयाल सुपुत्र लाला सरदारीलाल, (१०) लाला गोपालशाह, (११) लाला लद्धेशाह की पत्नी व पुत्र, (१२) लाला तिलकचन्द, (१३) लाला पालामल की धर्मपत्नी गुरुदेवी तथा उसका सारा परिवार, (१४) लाला जगन्नाथ, (१५) लाला बनारसीदास, (१६) लाला शोरीलाल नाह (१७) लाला मुनशीलाल, (१८) लाला देवराज मुन्हानी विशेष उल्लेखनीय हैं । तथा (१६) लाला रामलाल ज्ञानचन्द (पपनाखा वाले) (२०) लाला तुलसीदास ( किलादीदर सिंह वाले), (२१) लाला मुलखराज ( पपनाखावाले), (२२) लाला सरदारीलाल ( जम्मूवाले) ये ( नं० १६ से २२ तक) मूल श्वेतांबर जैनों के परिवारों को मिलाकर लगभग २५ परिवारों के श्वेतांबर संघ की स्थापना कर श्री आत्मानन्द जैन सभा की स्थापना की । स्यालकोट से विहार कर आप पुनः गुजरांवाला में गुरुदेव के चरणों में पधारे। यहां प्राकर नवपद प्रोली का आराधन प्रारंभ कर दिया । नवपद सिद्धचक्र की आराधना केलिये कपड़े पर नवपद मंडल का चित्र श्री हीरालाल जी दुग्गड़ से चित्रण कराया। वि०सं० १९८२ जेठ सुदि ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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