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प्राचार्य विजयवल्लभ सूरि
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हुए व्यवसायिक, राजनैतिक आदि क्षेत्रों में भी सफलता पाकर सर्वत्रिक उन्नत हो सकेंगे। दोनों प्रकार की शिक्षाए मानव जीवन के लिये एक दूसरे की पूरक हैं। इसीलिये आप "प्रज्ञान तिमिर तरणि" कहलाये और समाज ने आपको इस पदवी से अलंकृत कर अपने कर्तव्य का पालन किया।
देश सेवक आप आध्यात्मिक नेता थे, महान प्राचार्य थे किन्तु राष्ट्र के प्रति भी अपने कर्तव्य केलिये सदा जागरूक रहे । अहिंसा और शुद्ध खादी वस्त्रों की प्रतिष्ठा पर कायम भारत की राजनीति के कर्णधार राष्ट्रपिता गांधी के अहिंसा और शुद्ध स्वदेशी वस्त्रों के प्रचार कार्य को महान प्रोत्साहन देते रहे। आपने अपने प्रभावक उपदेशों से जनसमुदाय और विशेषत: जैनसमाज से धर्म और अहिंसा के विरुद्ध वस्त्रों का परित्याग कराकर भारतवासियों पर महान् उपकार किया। देश के स्वतंत्रता के इतिहास में आप श्री का सहयोग और कीर्ति सदा अमर रहेगी।
समाज सुधारक आपने कांग्रेस का जन्म, बंगाल विभाजन, चंपारण सत्याग्रह तथा जलियांवाला हत्याकांड सब देखे-सूने थे। इसलिये आप राष्ट्रीय प्रांदोलनों से अछूते न रहे। इन आन्दोलनों का प्रयोग आप समाज के मंच पर भी करते रहते थे। ई० सं० १९२१ तक प्रापने पूरे समाज को राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत कर दिया। आपके एक आह्वान पर सभी ने विदेशी वस्तुओं का परित्याग कर दिया और राष्ट्र सेवा में सब लोग तन-मन-धन से जुट गये। एक लम्बे समय तक पंजाब में शुद्ध खादी के दहेज दिये व लिये गये । कइयों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दी और अनेक देश की प्राजादी के प्रान्दोलन में जुट गये । आप समाज में व्यर्थ रूढ़ियों तथा बुरे रिवाजों के विरुद्ध थे एवं समाज को आदर्श प्रगतिवादी बनाना चाहते थे। कन्या विक्रय, वर विक्रय, अनमेल विवाह, वृद्ध विवाह, विवाह शादियों में आडम्बर तथा फ़िजूल खचियों को बन्द कराने के लिये तथा समाज में विद्यमान कुरीतियों को मिटाने के लिये आपने समस्त पंजाब के जैन समाज को संगठित करके श्री आत्मानन्द जैन महासभा की स्थापना की और उसके द्वारा समाज में विद्यमान कुरीतियों को देश निकाला देने के लिये सर्व-सम्मति से प्रस्ताव पारित कराकर समाज सुधार की नींव डाली। आप सदा समाज को आदर्श तथा प्रगतिशील बनाने के लिये प्रयत्नशील रहे।
आपका विश्वास था कि चारित्र निर्माण के बिना राष्ट्र का वास्तविक तथा स्थाई उत्थान संभव नहीं। इसके बिना यदि स्वतंत्रता प्राप्त हो भी गई तो टिक न पायेगी। प्रजा पीडित तथा पददलित हो जावेगी। इसलिये राष्ट्र नेताग्रो को तो अवश्य ही अपने चरित्र निर्माण तथा निःस्वार्थ सेवा का लक्ष्य रखना चाहिये । आपके पास ग्राने वाले कई नेताओं को आपने कुव्यसनों का त्याग कराया था।
राष्ट्र पुरुष प्राचार्य श्री "वल्लम भाई पटेल तथा विजयवल्लभ सूरि-एक वल्लभ ने राजक्षेत्र में जन्म लिया और दूसरे वल्लभ ने धर्मक्षेत्र में जन्म लिया। देश को स्वतंत्रता प्राप्त करने तथा उसे स्थाई टिकाये रखने के लिये इन दोनों महापुरुषों ने एक दूसरे के काम की पूर्ति की।"
रहस्यमय सुन्दर ये प्रेरक शब्द वि० सं० २००६ को भाई दूज के दिन अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेतांबर कान्फरेंस के स्वर्ण महोत्सव अधिवेशन के पंडाल भायखला बम्बई में प्राचार्य
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