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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
किन्तु यदि कोई मत-संप्रदायवादी जैनधर्म पर आक्षेप करने पर उतारू हो जाता तो आप शास्त्रार्थ करने से भी पीछे नहीं रहते थे। एक जमाना शास्त्रार्थों का कहा जाता था आपको भी अनेक शास्त्रार्थ करने पड़े, जिनमें से तीन तो बड़े ही महत्वपूर्ण थे। एक तो वि० सं० १९६५ में गुजरांवाला में सनातनर्मियों से, दूसरा सामाना में स्थारकवासी पूज सोहनलाल जी से तथा तीसरा नाभा में वहां के महाराजा की पण्डित सभा में हँढियों से । नाभा की पण्डित सभाका लिखित निर्णय व सामाना की पंचायत का लिखित निर्णय सभी में आपका पक्ष मान्य रहा। सब शास्त्रार्थों में विजय ने पाप के चरण चूमे ।
सन्क्रान्ति महोत्सव पंजाब जनपद में सूर्य संक्रान्ति के दिन से ही विक्रम अथवा शक संवत् के महीने का प्रारम्भ होता है। उस दिन लोग ब्राह्मणों से महीने का नाम सुनते थे । दृढ़ श्रद्धावान कतिपय जन परिवारों ने प्राचार्य श्री से प्रार्थना की कि — “गुरुदेव हम अापके श्रीमुख से संक्रान्ति का नाम सुनना चाहते हैं सो आप कृपा करिये। वि० सं० १९६७ से प्राचार्य श्री ने गुजरांवाला में प्रतिमास सूर्य संक्रान्ति के दिन श्रीसंघ समक्ष इस महोत्सव की शुरूपात की।
मध्यमवर्ग सहायता महामानव का जीवन दूसरों के उपकार के लिए ही होता है-"पर दुःखे उपकार करे तोय मन अभिमान न आने रे ।" यह महान् मानबी का लक्षण है ।
आपके जीवन का प्रत्येक पल परोपकार में व्यतीत हुआ। मध्यमवर्ग का उद्धार आपका महान कार्य रहा । अनेक जैनों और अजनों के दुःख भरी दास्तानों के पत्र आते रहते थे। प्रत्यक्ष रूप से भी ऐसे लोग आपके चरणों में पा उपस्थित होते थे । उन पत्रों और दास्तानों को लक्ष्य में रखकर दुःखियों को दुःखमुक्त कराने का भरसक प्रयत्न करने में अनेक धनवान श्रावकों से गुप्त रूप से सहायता करा देते थे । व्यक्तिगत लोगों को भी गुप्त सहायता दिलाकर दुःख मुक्त करते थे। विधवा, साधनहीन महिलाओं और पुरुषों को रोजगार दिलाने के लिए हुन्नर, उद्योगशालाएं खुलवाकर मध्यमवर्ग को अपने पांव पर खड़ा होने में सहयोग दिलाते थे। बड़े-बड़े जैन मिलमालिकों के पास भेजकर उनके वहाँ नौकरी अथवा दलाली पर लगाने के काम की व्यवस्था करा देते थे। वि० सं० १९५४ में मालेरकोटला में दुष्काल पड़ा, यह जानकर आपने दो वस्तुओं का त्याग कर दिया। भूख से पीड़ितों के लिए आपने हजारों रुपये का फंड एकत्रित कराकर दान शालाएं खुलवा दीं । जब-जब भी जहाँ कहीं भी दुष्काल पड़े, वहां की जनता को अन्न, वस्त्र, निवास आदि के लिये फंड करवा कर उन्हें संकट मुक्त कराया। वि० सं० १६७४ में पाटण (गुजरात) में दुष्काल पीड़ितों के लिए फंड करवाकर वितरण कराया। वि० सं० २०१० में बंबई में साधर्मी सेवासंघ की स्थापना की जिसके द्वारा मध्यमवर्ग के अनेक भाई-बहनों को रोजगार दिलाया। बम्बई में मध्यमवर्ग के लिये सस्ते भाड़े के मकानों का निर्माण कराने का उपदेश दिया जिससे मकानों का निर्माण होकर उन्हें राहत मिली।
विद्यार्थी सहायता १. बम्बई में महावीर जैन विद्यालय की स्थापना करके तथा गुजरात, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र के कतिपय नगरों में इसकी शाखाएं स्थापित करवाकर, उच्चशिक्षा प्राप्त करने केलिए मध्यमवर्ग
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