________________
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
(१) वि० सं० १८८६ प्राषाढ़ वदि ७ को उत्तरार्द्ध लुकागच्छ के श्रीपज्य विमलचन्द्र जी के पट्टधर श्रीपूज्य रामचन्द्र जी ने अपने यतिमंडल के साथ पंजाब में श्रावक श्री दासमल द्वारा निकाले हए छरी पालित यात्रासंघ के साथ पारकर (सिंध) देश में श्री गौड़ी पार्श्वनाथ के प्रति प्राचीन जैनमहातीर्थ की यात्रा की थी। उस समय उन्हों ने जो संस्कृत में गौड़ी पार्श्वनाथ की स्तुति की थी उस में यहां की यात्रा करने का उल्लेख किया है।
APA
स्तुति
___ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ (आदि) गौड़ी प्रभो पाश्र्व ! दर्शनं देहि मे । संघेन साद्ध समुपागतां मे ।
अव्यक्त मूर्ते जनतारक ! दर्शनं भक्तयाय लोकेश दया सुधानिधे ।।१।। पारकरे देशवरे सुवासनं योगैरचित्यं भववारिपातकं ।
वामांगजं देव - नरेन्द्र सेवितं । ध्यायामि ऽहं कर्मवनौघदायकं ॥२॥ (अन्त) लुकोत्तरार्द्धस्य गणस्य स्वामिना श्री रामचन्द्रेण सहीवभावता।
श्री दासमल्लेन च संघधारया। यात्रा विहारी करणाय आगता ॥८॥ अंकाष्टाष्ट वर्षयुतेन भूमयेद्वाषाढ मासे असित सप्तमी तिथौ ।। भाग्येन यात्रा तव देव सम्मतां कृत्वा कृतं जन्मकृतार्थमूत्तमं ।।६।। प्रहं भावेन ते पार्श्व नमामि चरणद्वयं संसारवासतो भीतं ।
मां रक्ष-रक्ष कृपानिधे ! त्वं । गौड़ी प्रभो पाव । दर्शनं देहि मे ॥१०॥ (२) वि० सं० १८३३ मिति फाल्गुण वदि १२ को पंजाब से तपागच्छीय यति श्री फत्ते विजय जी पारकर देश में श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी की यात्रा करने आये थे। उस समय उन्हों ने हिन्दी भाषा में श्री गौड़ी पार्श्वनाथ की स्तुति की थी। जिस में उन्होंने यात्रा करने का उल्लेख किया है। यथा
पारकर देशे श्री गौड़ी पार्श्वनाथ का स्तवन (आदि) भाग्यवश आसफली आज जागया है मुझ पूरब पुण्य के ।
___ पारकर मंडन भेटतां । अवतार जेह थयो मुझ धन्य के ॥१॥ (प्रत) संवत् अठारे तेत्रीस में । फागुन वद है द्वादशी शनिवार के ।' फतेविजय कहे रंगस्यू। गौड़ी भेट्यो है हुमो जय-जयकार के ॥७॥
(यति रामचन्द्र लिपिकृतं वि० सं० १८६४) 1. वि० सं० १८८६ मिति प्राषाढ़ वदि ७ 2. वि० सं० १८३३ मिति फाल्गुण वदि १२ शनिवार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org