________________
४५४
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म (अमरीका) में जैनधर्म पर भाषण देने के लिये तथा अन्य देशों में भाषणों द्वारा जैनधर्म के परिचय, प्रचार और प्रसार द्वारा प्रभावना केलिये अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजा। उस समय अपने-अपने धर्मपंथों के प्रचार के लिये भारत से स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द प्रादि अनेक विदान भी वहां गये थे। वीरचन्द राघवजी गांधी को विलायत भेजने के बाद बम्बई अहमदाबाद प्रादि के जनसंघों ने उनके विरोध में भारी वावण्डर उठाया । वीरचंद भाई को संघ बाहर करने का आन्दोलन जोरों से उठ खड़ा हुआ। यह आन्दोलन इन को विदेश जाने के अपराध में कड़े से कडा दंड दिलाना चाहता था । किन्तु पाप श्री के प्रभाव से यह आंदोलन अपनी मौत अपने आप ही मर गया । वीरचन्द भाई तथा गुरुदेव इस साहस के कारण अमर हो गये।
६. उस समय पंजाब में सर्वत्र प्रार्यसमाज और ईसाई धर्म का प्रचार बड़े जोर से चालू था जैनधर्म पर अनेक आक्षेप किये जा रहे थे। स्वामी दयानन्द ने अपने सत्यार्थप्रकाश में जैनधर्म को नीचा दिखाने के लिये एक पूरा सम्मुलास ही लिख डाला। ईसाई पादरी जैनधर्म के विरोध में खूब प्रचार कर रहे थे। उनके पाक्षेपों के उत्तर में अज्ञान-तिमिर-भास्कर तथा ईसाई मत समीक्षा नाम की क्रमशः दो पुस्तकें लिखीं। स्थानकमागियों ने भी आप को पिछाड़ देने के लिये कोई कमी न रखी। उन्होंने सम्यक्त्वसार आदि कई पुस्तकें लिखकर नीचा दिखाना चाहा। पाप ने उत्तर में सम्यक्त्व-शल्योद्धार नामक पुस्तक लिखी। सद्धर्म की सुरक्षा के लिये अनेक धर्मचर्चाय और शास्त्रार्थ किये । अपनी जान को जोखम में डालकर भी कठोर परिषहों तथा उपसर्गों को हंसतेहंसते झेला और विजय दु'दुभि बजाई । अनेक ग्रंथ रत्नों की रचना करके जैनधर्म के सत्यस्वरूप को प्रकाश में लाये । अनेक स्वदेशी-विदेशी विद्वानों को जैनदर्शन की आस्था में दृढ़ किया । शोध खोज करनेवाले अनेक विदेशियों के पाप पथ प्रदर्शक बने। आप श्री किसी मतपंथ-संप्रदाय पर प्राक्षेप पूर्ण व्याख्यान अथवा लेखन करना पसंद नहीं करते थे । परन्तु यदि कोई जैनधर्म पर लेखन प्रथबा भाषण द्वारा कीचड़ उछालता तो उस का युक्ति पुरस्तर मुंहतोड़ उत्तर देने में भी पीछे नहीं रहते थे।
७. आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने सत्यार्थप्रकाश में जैनधर्म के विषय में लिखी हुई असंगत बातों के विरोध में प्रज्ञान-तिमिर-भास्कर नामक ग्रंथ को लिखकर प्रतिवाद किया और इस पंथ की निस्सारता बतलाई । मात्र इतना ही नहीं परन्तु साक्षात् रूप से दयानन्द सरस्वती के साथ शास्त्रार्थ करने का आह्वान किया। जोधपुर में शास्त्रार्थ करने का निश्चय भी हो गया था। पाप श्री ने जोधपुर के लिये विहार कर दिया था। शास्त्रार्थ करने में अभी कुछ दिन बाकी थे तब दयानंद सरस्वती अपने रसोइये के साथ अजमेर गये। यह सोचकर कि रेल द्वारा शास्त्रार्थ के दिन जोधपुर पहुंच जायेंगे। परन्तु उनके रसोइये ने भोजन में वहां विष दे दिया और जीवन लीला समाप्त कर दी गयी। प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि (प्रात्माराम) जी पंजाब से पैदल विहार कर जोधपुर पहुंच चुके थे। परन्तु दयानन्द जी वापिस न लौट सके और उन का वहीं अन्त हो गया।
८. पूज्य आत्मारामजी ने पंजाब में जैनमंदिरों का जाल बिछा दिया था। इन को पूजने वाले गृहस्थों को शुद्धसनातन प्राचीन श्वेतांबर जैनधर्म से प्रतिबोधित करके श्रद्धालु भी बना चुके थे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org