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सद्धर्म संरक्षक मुनि श्री बुद्धिविजय जी
४१७ के वस्त्र से अपना मुह बांधती है । फिर भगवान गौतम स्वामी से कहती है कि हे गुरुदेव ! मुंहपत्ती से मुंह बांधिये । मृगादेवी के ऐसा कहने पर (आपने भी) मुहपत्ती से मुख को बांधा । बांधकर इत्यादि।
उपयुक्त पाठ से यह स्पष्ट है कि मृगादेवी ने गौतम स्वामी को दुर्गन्ध से बचने के लिये ही मुह को ढांकने के लिये कहा था और वह भी उस मुंहपत्ती से जो उनके हाथ में थी। परन्तु सावद्यभाषा अथवा वायुकाय की हिंसा से बचने के लिये नहीं कहा था। जनश्रमण नंगे सिर रहता है, यदि उसका सिर फोड़े-फुसियों से भर जाय और मक्खियों आदि के उपद्रव से रोकने के लिये सिर को कपड़े से ढांकना पड़ें, तो इसका प्रयोजन सिर को दिन-रात चौबीस घंटे जीवन पर्यन्त ढाँकने का नहीं है । यदि कोई व्यक्ति यह प्रमाण देकर चौबीस घंटे जीवन पर्यन्त सिर ढांकने का सिद्धांत बना ले तो विचक्षण लोग उसे बेसमझ ही कहेंगे। वैसे ही इस प्रसंग से समझना चाहिये ।
(२) भगवती सूत्र के शकेन्द्र वाले पाठ को भी समझ लेना चाहिये, जो इस प्रकार है
(प्रश्न) "सक्के गं भंते देवींवे देवराया कि सावज्जं भासं भासति प्रणवज्ज पि भास भासति?
(उत्तर) गोयमा ! सावज पि भासं भासति प्रणवज्ज पि । (प्रश्न) से केणद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ-सावज्ज पि जाव प्रणवज्ज पि भासं भासति ?
(उत्तर) गोयमा ! जाहे णं सक्के देवींदे देवराया सुहमकायं अणिजहिता णं भासं भासति, ताहे रणं सक्के देवींदे देवराया सावज्ज भासं भासति । जाहे णं सक्के देवींदे देवराया सुहमकायं णिहिता णं भासं भासति, ताहे रणं सक्के देवीदे देवराया अणवज्ज भासं भासति, से तेणठे णं जाव-मासति ।
(प्रश्न) देवीदे देवराया किं भवसिद्धीए प्रभवसिद्धीए सम्मविट्ठीए-मिच्छादिट्ठीए । (उत्तर) एवं जहामो उद्देसए सण्णकुमारे जाव नो अचरिभे।" (भगवती सूत्र श० १६,३०२)
अर्थात्- (प्रश्न) "हे प्रभो ! शक्र देवेन्द्र देवतामों का राजा सावद्य (पाप युक्त) भाषा बोलता है अथवा निरवद्य (पाप रहित) भाषा बोलता है ?
(उत्तर) हे गौतम ! वह सावध भाषा भी बोलता है निरवद्य भाषा भी बोलता है। (प्रश्न)हे पूज्य! पाप ऐसा कैसे कहते हैं कि वह सावध भी, निरवद्य भी भाषा बोलता है ?
(उत्तर) हे गौतम ! यदि शक्रेन्द्र देवेन्द्र, देवताओं का राजा मुख को हाथ से ढाँक कर अथवा वस्त्र से ढाँककर नहीं बोलता तो सावध भाषा बोलता है। यदि हाथ या वस्त्र से मुख को ढाँककर बोलता है तो निरवद्य भाषा बोलता है ।
(प्रश्न) हे भगवन् ! शक्रेन्द्र देवेन्द्र देवताओं का राजा भव-सिद्ध हैं अथवा अभव-सिद्ध है, सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्टि हैं !
(उत्तर) हे गौतम ! हम इसका खुलासा इसी पागम के तृतीय शतक के प्रथम उद्देशे में सनत्कुमार के वर्णन में कर पाये हैं । वहाँ से जान लेना।"
सनत्कुमार का प्रसंग इस प्रकार है(प्रश्न) "सणं कुमारे रणं भंते । देवीन्दे देवराया कि भवसिद्धीए, अभवसिद्धीए ? सम्म
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