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मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म
बहुत प्राचीन काल से लेकर आज तक श्वेतांबर परम्परा की मालिकी के मंदिरों', तीर्थों में नग्न मूर्तियों का अस्तित्व उनका पूजन, अर्चन निर्विरोध रूप में चालू देखते हैं किन्तु श्वेतांबरपरम्परा में सवस्त्र, सालंकार मूर्तियों को भी स्थान है। जैसे-जैसे दोनों फिरकों में कशमकश बढ़ती गई वैसे-वैसे श्वेतांबर परम्परा में सवस्त्र तथा सालंकार मूर्तियों की प्रतिष्ठा-स्थापना बढ़ती चली गई है। -परन्तु मथुरा के कंकाली टीले से निकली हुई श्वेतांबर प्राचार्यों के नामों से अंकित प्रतिष्ठित नग्न मूर्तियाँ और उसके बाद भी अनेक शताब्दियों तक चालू रही हुई नग्न मूर्तियों का श्वेतांबरीय प्रतिष्ठा का विचार करने से यह स्पष्ट है कि श्वेतांबर परम्परा आध्यात्मिक उपासना
1. श्वेतांबर परम्परा के उदयपुर जिले में ऋषभदेव नाम के गाँव में मंदिर है जिसमें श्रीऋषभदेव
की नग्न प्रतिमा जो केसरियाजी के नाम से प्रसिद्ध है तथा अनेक अन्य नग्न प्रतिमाएं भी विराजमान हैं । तथा आगरा के रोशन मुहल्ले में चिन्तामणि पार्श्वनाथ के श्वेतांवर मंदिर में श्री शीतलनाथ प्रभु की नग्न प्रतिमा विराजमान है।
2. तीर्थ करों के पाँचों कल्याणकों की उपासना के लिये नग्न-अनग्न, सवस्त्र-सालंकार प्रतिमाएं
मानी जाती हैं जो आगम प्रमाण से प्रमाणित है।
3. मथुरा का कंकाली टीला देवनिर्मित जैन स्तूप का ध्वंसावशेष है जिसका उल्लेख श्वेतांबर
शास्त्रों में पाया जाता है यह स्तूप बहुत प्राचीन था। इसके निर्माण का समय कोई नहीं जानता इसलिये दंतकथा इसे देवताओं द्वारा निर्माण किया गया मानती चली आ रही है । इस टीले की खुदाई से ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर ईसा की दूसरी शताब्दी तक नग्न तथा अनग्न अनेक तीर्थंकरों की प्रतिमाएं खड़ी तथा पद्मासन में बैठी हुई प्राप्त हुई हैं जिन पर श्वेतांबर आचार्यों के प्रतिष्ठा कराने के लेख अंकित हैं । खड़ी प्रतिमों में पुरुष चिन्ह (जननेन्द्रीय) बना है। बैठी में नहीं है। ये प्रतिमाएं ऋषभदेव से लेकर महावीर तक अनेक तीर्थंकरों की अनेक प्राप्त हुई हैं । बैठी अनग्न मूर्तियां भी अनेक प्राप्त हुई हैं उन पर भी श्वेतांबर प्राचार्यो के लेख अंकित हैं। इनमें महावीर के गर्भ परिवर्तन करते हुए हरिणेगमेशी का पट्टक भी मिला है। सिर पर पांचमुख वाले सर्पफण वाली पद्मासनासीन सुपर्श्वनाथ की बहुत बड़ी प्रतिमा भी मिली है तथा एक वस्त्रधारी जैन साधु के शिलापट्टक भी मिले हैं। एक पाषाण में चारों तरफ एक-एक तीर्थंकर की चार प्रतिमाएं नग्न खड़ी भी मिली हैं। इन चारों प्रतिमानों में से (१) एक के सिर पर नौ मुह वाला सर्पफण है जिससे वह पार्श्वनाथ की मूर्ति है। (२) एक प्रतिमा के दोनों कन्धों पर केश लटक रहे हैं—यह ऋषभदेव की प्रतिमा है । (३) एक प्रतिमा के चरणों के पास बालक को लियेहुए स्त्री की मूर्ति है । यह स्त्री अंबिकादेवी है । अंबिकादेवी अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) की शासनदेवी है । अतः यह प्रतिमा नेमिनाथ की है। (४) चौथी प्रतिमा के पादपीठ पर सिंह बने हुए हैं । सिंह महावीर का लांछन (प्रतीक) है । यह प्रतिमाएं क्रमशः ऋषभदेव, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर चार तीर्थंकरों की है। इस टीले से प्राप्त सब मूर्तियाँ मथुरा तथा लखनऊ के पुरातत्व संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।
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