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श्रध्याय ६
पंजाब में धर्मं क्रान्ति
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हम लिख आये हैं कि विक्रम की १७वीं शताब्दी तक जैन श्वेतांबर साधु-साध्वियों का आवागमन तथा निवास पंजाब में बराबर रहा। परन्तु अकबर मूगुल के पौत्र जहाँगीर की मृत्यु के याद औरंगज़ेब के राज्यकाल में तथा उसके बाद इस क्षेत्र में श्वेतांबर जैन साधुयों का विहार एकदम बन्द हो गया और इनकी संख्या भी घटते घटते वि० १६वीं शताब्दी के अन्त तक सारे भारत में मात्र २०, २५ की रह गई थी इधर वि० की १६वीं शताब्दी में लुका गच्छ के यतियों का प्रवेश पंजाब में हो गया और इन्होंने धीरे-धीरे सारे पंजाब में अपनी गद्दियाँ स्थापित कर लीं तथा अपने मत के प्रचार का श्रीगणेश कर दिया। वे अपनी गद्दियों के साथ जिनमंदिरों का निर्माण भी करते थे और पूजा उपासना भी। पश्चात् वि० सं० १७३१३२ में पंजाब में ढूँढक मत का प्रवेश हुआ । यह पंथ जैनमंदिर मूर्तियों की मान्यता का विरोधी तथा अपने मुंह पर दिन-रात मुंहपत्ति बांधने वाला है। लुकामत की दो शाखायें हो गई । १ - लौंका गच्छीय यति जिनका उल्लेख हमने ऊपर किया है। इस मत की अहमदाबाद में शाह गृहस्थ ने वि० सं० १५०६ में घोषणा की और वि० सं० १५३१ में माना जी नामक तिने सर्वप्रथम इस मत की दीक्षा लेकर लौंगागच्छ की स्थापना की। पश्चात् वि० सं० १७०६ में लवजी नामक लौंकागच्छीय यति ने जिनप्रतिमा का उत्थापन तथा मुंह पर मुंहपत्ति को बाँधना प्रारंभ कर स्वयमेव इस मत की साधु दीक्षा लेकर ढूंढक मत की अहमदाबाद में स्थापना की । और इसने घोषणा की कि मैंने सत्यपथ ढूंढ लिया है इसलिये प्राज से मेरे मत का नाम ढूंढक अथवा ढूंढिया है । इस मत का पहला साधु पंजाब में लाहौर नगर में वि० सं० १७३१ में आया और उसने अपनी शिष्य परम्परा बढ़ाकर जनमंदिरों की मान्यता और उपासना का घोर विरोध किया और इस मत के साधु-साध्वियों के लिये चौबीस घंटे मुँहपत्ति बांधना तथा गृहस्थों को सामायिक प्रतिक्रमण के समय मुंहपत्ति बाँधने का प्रचलन किया ।
जैन श्वेतांबर साधु-साध्वियों का पंजाब में एकदम प्रभाव और प्रचार बंद हो गया एवं इधर मुसलमान शासकों का मूर्ति के विरुद्ध जिहाद और ढूंढकपंथ के मूर्ति के विरुद्ध सर्वव्यापक ज़बर्दस्त आन्दोलन का यह परिणाम प्राया कि सारे पंजाब में प्राय: ढूंढक मत का प्रचार और प्रसार हो गया और प्राचीन जैनधर्म लुप्त प्रायः हो गया । यहाँ के निवासी इस धर्म से सर्वथा अनभिज्ञ हो गये थे । इस बात का हम विस्तार पूर्वक वर्णन पहले कर आये हैं ।
१. सत्यवीर - सद्धर्मसंरक्षक मुनि बुद्धिविजय (बूटेराय) जी
वि० सं० १८६३ में जिला लुधियाना, सिरहंद के निकट दलुना नाम के गाँव में सिक्ख धर्मानुयायी जाट जमींदार सरदार टेकसिंह के घर एक बालक का जन्म हुआ इसका नाम
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