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अध्याय ३
जैन धर्म और शासक
जैनों के चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी (ई० पू० ५२७ ) के बाद उनके पांचवें गणधर शिष्य श्री सुधर्मास्वामी जैनसंघ के मुख्य संरक्षक बने । श्राप प्रभु महावीर के समस्त चतुर्विध संघ (साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका संघ) के सर्वमान्य श्राचार्य हुए। भगवान महावीर का संघ निग्रंथ संघ कहलाता था । साधु-साध्वियों के समूह को गण कहते हैं । अतः यह गण निग्रंथ गण ( गच्छ ) कहलाया । सुधर्मास्वामी के छठे पट्टधर श्री भद्रबाहु स्वामी हुए । प्राप चौदह पूर्वधर थे । आपने मूलागमों पर नियुक्ति भी लिखी। आपका स्वर्गवास महावीर के १७० वर्ष बाद (ईसा पूर्व ३५७ वर्ष) में हुआ । दिगम्बर मतानुयायी श्रुतकेवली भद्रबाहु का स्वर्गवास वीर निर्वाण संवत् १६२ मानते हैं | देखें दिगम्बर विद्वान डा० ज्योतिप्रसाद जैन एम० ए० एल० एल० बी० पी० एच० डी० लखनऊ कृत पुस्तक 'प्रमुख ऐतिहासिक जैनपुरुष और महिलाएं पृष्ठ ३१ ।
१. मौर्य साम्राज्य और जैनधर्म
भगवान् महावीर के निर्वाण (ईसा पूर्व ५२७ ) के ५० वर्ष बाद ( ईसा पूर्व ४७७ ) मगध में नन्दों का राज्य स्थापित हुआ । और १५५ वर्ष ( ई० पू० ३२२ वीरात् २०५ ) तक रहा। मौर्यवंशीय चंद्रगुप्त ने मंत्री चाणक्य के सहयोग से वीरात् २०५ में अपना राज्य तक्षशिला पंजाब में स्थापित किया । श्रेणिक, नन्द और चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार पंजाब-सिंधु पर भी था । चन्द्रगुप्त मौर्य ने गांधार- पंजाब में राज्य स्थापित करने के बाद वीरात् २०५ से २२६ ( ई० पू० ३२२ से २६८) तक पंजाब से लेकर मगधदेश तक राज्य किया। इस की गांधार देश की राजधानी तक्षशिला थी । २४ वर्ष राज्य करने के बाद इसका देहांत हो गया ।
युनानी सिकन्दर का पंजाब पर आक्रमण
नवे नन्द के राज्य में एक विशेष घटना घटी। युनान के महाप्रतापी सिकन्दर ने सारे युनान पर अधिकार जमा लिया। फिर मिस्र, टर्की को जीतता हुआ ईरान पर धावा बोल दिया । वहाँ के राजा दारा को मार कर ईरान पर भी कब्जा कर लिया । फिर सीस्तान (शको के रहने के स्थान) को जीत कर कंधार जीता। फिर समरकन्द, बुखारा आदि सब देशों को जीतते हुए, उधर ही एक हिन्दुस्तानी राजा शिशुगुप्त को जीता और उसे साथ में लेकर ई० पू० ३२६ में पंजाब पर चढ़ाई की। रावलपिंडी के उत्तर में तक्षशिला (गांधार - बहली) के राजा को उसकी प्राधीनता स्वीकार करनी पड़ी । यह राजा भी सिकन्दर के साथ हो लिया । पश्चिमी कन्धार का राजा
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