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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
- (१४) दिगम्बर जैनग्रंथ 'राजावली कथा' में भी यही कथा लिखी है । वहां पर भी विचाराधीन चंद्रगुप्त अशोक का पितामह न होकर उसका पौत्र है। वहाँ यह भी लिखा है कि चन्द्रगुप्त अपने पुत्र सिंहसेन को राज्य देकर भद्रबाहु के साथ जैनमुनि बन गया और दक्षिण की तरफ़ चला गया ।
हम जानते हैं कि मौर्यवंश के संस्थापक चंद्रगुप्त का पुत्र सिंहसेन नहीं था अपितु बिन्दुसार था। अतः राजावली कथा के अनुसार भी अशोक के पितामह चन्द्रगुप्त के साथ श्रवण-बेलगोला का कोई सम्बन्ध नहीं था।
इस तरह हमने देखा कि दिगम्बर जैन ग्रंथ पुण्याश्रव कथाकोष और राजावली कथा के अनुसार जिस चंद्रगुप्त ने आचार्य भद्रबाहु के साथ श्रवण-बेलगोला में जाकर अनशन करके स्वर्गपद प्राप्त किया था। वह अशोक का पौत्र तथा कुणाल का पुत्र है, न कि अशोक का पितामह ।
दिगम्बर मत के भद्रबाहु चरित्र में मुख्यतया प्राचार्य भद्रबाहु का इतिहास लिखा गया है। उस में इस बात के लिये कोई निर्देश नहीं है कि भद्रबाहु का शिष्य कौनसा चन्द्रगुप्त है। चंद्रगुप्त नाम के कई सम्राट हुए हैं। श्रवण-बेलगोला के शिलालेखों के सम्बन्ध में भी यही बात है कि वे जैन अनुश्रुति के अनुसार श्रवण-बेलगोला की अनुश्रुति को लेखबद्ध कर देते हैं। इससे अधिक ये कोई मदद नहीं करते।
__ श्वेतांबर जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि कृत परिशिष्टपर्व विद्वानों द्वारा ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमाणित मान्य प्रसिद्ध ग्रंथ है । जिसमें चंद्र गुप्त की मृत्यु तक का वर्णन किया गया है। परन्तु उसके साथ श्रुतकेवली भद्रबाहु और श्रवण-बेलगोला का कोई जिक्र नहीं है । दिगम्बर पाराधना कथाकोष में भी चाणक्य की कथा अलग लिखी गई है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर क्या हम सुगमता से इस परिणाम पर नहीं पहुंच सकते कि-"मौर्यवंश के संस्थापक चंद्रगुप्त प्रथम श्रुतकेवली भद्रबाहु और श्रवण-बेलगोला का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। इन दिगम्बर कथाओं के अनुसार वह यह सम्बंध अशोक के पौत्र राजा चंद्रगुप्त के साथ है। श्रीयुत राईस ने इस कठिनाई का अनुभव किया था इसीलिये इस कठिनता से बचने के लिये उन्होंने लिखा था कि दो चंद्रगुप्तों का लिया जाना प्राचीन अनुश्रुति में कुछ गड़बड़ का परिणाम है और जैनलेखकों ने भूल से चंद्रगुप्त जो वस्तुतः अशोक का पितामह था अशोक का पौत्र लिख दिया है। परन्तु हम देखते हैं कि पुण्याश्रव कथाकोष में दोनों चन्द्रगुप्तों (अशोक के पितामह और पौत्र) का ज़िक्र करते हुए स्पष्ट लिखा है कि अशोक के पौत्र ने भद्रबाहु से दीक्षा लो और वह श्रवणबेलगोला गया ।
जब हम यहाँ टिप्पणी नं० १५ में दिये गये श्रवणबेलगोला वाले शिलालेख पर दृष्टि डालते हैं तो उस से एक तीसरा मत स्पष्ट दिखलाई देता है, उसमें लिखा है कि-"गौतम गणधर के साक्षात् शिष्य लोहार्य, उनके शिष्य जम्बु, उनके शिष्य विष्णुदेव, उनके शिष्य अपराजित, उनके शिष्य गोवर्द्धन, उनके शिष्य भद्रबाह [प्रथम], विशाख, पोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग,
1. Indian Antiquary Vol XXI में भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त पर डा० फ्लीट का लेख देखिये । 2. Indian Antiquary XXI डा. फ्लीट का भद्रबाहु और चाणक्य विषयक लेख ।
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