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१० वर्ष अपने पितामह और पिता के शासन में सहयोग दिया था । इस धर्मात्मा जैननरेश का देहावसान हो गया ।
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
लगभग ६८ वर्ष की आयु में
इसने अपने अंध पिता कुणाल के लिये तक्षशिला में एक जैनमंदिर का निर्माण भी कराया था जो ना कुणाल स्तूप के नाम से प्रसिद्ध है । इसी पर से तक्षशिला का नाम कुणालदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ । कुणाल तक्षशिला में निवास करता था इसलिये उसकी धर्मोपासना के लिये सम्प्रति ने इस मंदिर का निर्माण कराया था । सम्प्रति ने अपने स्वभुजबल से तीनखंड साधे । आठ हजार राजा इसके अधीन थे । इसकी सेना में पचास हजार हाथी, एक करोड़ घोड़ े, नौ करोड़ रथ और सात करोड़ पैदल सेना यह इसकी चतुरंगिनी सेना थी । कुणाल के स्थान पर पुराणों में सुयश नाम मिलता है । यह उसका विरुद ( खिताब ) होना चाहिये। उसने आठ वर्ष तक राज्य किया ऐसा पुराणों में लिखा है । उसके बाद उसका पुत्र दशरथ था । दशरथ का शिलालेख नागार्जुनी गुफ़ा ( बिहारांतरगत गया के समीप ) में अंकित है। ज्ञात होता है कि इसने वे गुफाएं आजीविकों को दी थी । बौद्धों के दिव्यावदान नामक ग्रंथ से जैनों के परिशिष्ट पर्व, विचारश्रेणी तथा तीर्थकल्प से ज्ञात होता है कि कुणाल का पुत्र सम्प्रति था। पुराणों की हस्तलिखित प्रतियों में बहुधा सम्प्रति का नाम नहीं मिलता । तथापि वायुपुराण की एक हस्तलिखित प्रति में दशरथ के पुत्र का नाम संप्रति लिखा है । तथा मत्स्यपुराण में 'सप्तति' नाम मिलता है कि जो सम्प्रति का अशुद्ध रूप है ।1
इस पर से अनुमान होता है कि मौर्यराज्य कुणाल के दो पुत्रों (दशरथ और सम्प्रति) में बट जाने से पूर्व का विभाग दशरथ के और पश्चिम का विभाग सम्प्रति के अधिकार में रहा होगा । संप्रति की राजधानी कहीं पाटलीपुत्र प्रौर कहीं उज्जयनी लिखा है ।
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" परन्तु इतिहासज्ञों का मत है कि सम्प्रति का राज समस्त भारत (दशरथ का मगध राज्य भी इसी के सहयोग से चलता था ) योन, कम्बोज, गांधार, बाल्हिक, अफगानिस्तान, तुर्किस्तान, ईरान, लंका, बलख, बुखारा, काशगर ईराक, नेपाल, तिब्बत, भूटान, खेटान, अरब, अफ्रीका, ग्रीस, एथेन्स, साइरीन, कोरीथ, एपिरस, बेबोलियन, ग्रीस की सरहद तथ एशिया माइनोर तक था । अपने राज्य के सब देशों में उसने अपने समय में अनेक जैनमंदिर बनवाये थे ? तीर्थकल्प में भी लिखा है कि परमार्हत सम्प्रत्ति ने अनार्य देशों में भी विहार ( मंदिर ) दानशालायें, बावड़ियाँ श्रादि लाखों की संख्या में बनवाये थे 12
कई विद्वानों का मत है कि सम्पत्ति की रोकथाम के लिये ही चीन की प्रसिद्ध दीवार बनायी गयी थी जो वहाँ श्राज भी विद्यमान है ।
६. शालीशुक मौर्य - सम्प्रति के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र शालीशुक उसके राज्य का उत्तराधिकारी बना, वह भी अपने पिता तथा पूर्वजों के समान जैनधर्म का अनुयायी था ।
७. वृषसेन मौर्य आदि - शालीशुक का पुत्र वृषसेन, उसका पुत्र पुष्पवर्धन तथा इन के और भी वंशज अल्पकालीन राज्य भोक्ता रहे । मौर्य साम्राज्य का अन्त ई० पू० १६४ में हो गया। ये सब मौर्यवंशी शासक जैनधर्मी थे । मौर्यकाल में जैनधर्म राज्यधर्म था । मौर्य राज्य १५८ वर्ष तक रहा ।
1. पार्जिटर The Puran Text of the Dynasties of the kaiage Page 28 or foot note : 2. श्री श्रोझाजी
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