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मौर्य साम्राज्य और जैनधर्म
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कर उसे देशव्यापी बनाया, उसे सुदृढ़ रूप से सुसंगठित किया। आदर्श व्यवस्था और सुशासन प्रदान किया तथा राष्ट्र को सुखी, समृद्ध, प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न बनाया। यह भी निर्विवाद सिद्ध हो चुका है कि भारत के सभी महान सम्राटों की भांति सर्वधर्म सहिष्णु और उदार होते हुए भी व्यक्ति रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य और प्राचार्य चाणक्य जैनधर्मी थे।
चन्द्र गुप्त मौर्य बचपन से ही बड़ा साहसी था । नन्द राजा ने उसे मार डालने का हुक्म दिया था । वह भागकर पंजाब चला आया था। पंजाब में तक्षशिला में उसे एक महाराजनीतिज्ञ ब्राह्मण चाणक्य मिल गया । सिकन्दर के भारत से लौट जाने पर चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की सलाह से सिकन्दर के जीते हुए प्रदेशों से विद्रोह कराकर स्वयं उन का शासक बन बैठा। फिर उन्हीं लोगों को सेना बनाकर मगध पर भी चढाई कर दी और नन्द राजा को जीत कर समस्त भारत का राज्य प्राप्त कर सम्राट बन गया ।
वैदिक, पौराणिक अथवा बौद्ध साहित्य साधनों से इस बात पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता कि राजनीति में आने से पूर्व चाणक्य और चन्द्रगुप्त कौन और क्या थे? उन का व्यक्तिगत जीवन क्या था और अन्त कैसे हुआ। प्राचीन अनुश्र ति और जनसाहित्य अवश्य ही इस सम्बन्ध में पर्याप्त प्रकाश डालते हैं । जिसकी प्रमाणिकता में भी सन्देह करने का कोई कारण नहीं है।
जैन प्रमाणाधारों के अनुसार चाणक्य का जन्म 'गोल्ल के अन्तरगत चणय' नामक ग्राम में हा था। उनकी माता का नाम चणेश्वरी और पिता का नाम चणक था और वे जाति से ब्राह्मण थे तथा जैनधर्म के श्रावक-श्राविका थे। जैसे-जैसे चाणक्य बड़ा होता गया, उसे उस समय की चौदह विद्यानों का ज्ञान हो गया और वह महान राजनीतिज्ञ बन गया। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार उस का जन्म तक्षशिला में हुआ था और वहीं के विश्वविद्यालय में शिक्षण पाया था। युवा होने पर उसके माता-पिता ने एक प्रतिष्ठित कुल की ब्राह्मण कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया और यह जैनश्रावक के रूप में जीवन यापन करने लगा। चाणक्य के अनेक नाम थे-वात्सायण, मल्लनाग, कुटिल, चाणक्य, द्रामिल, पक्षिलस्वामी, विष्णुगुप्त और अंगुल ।'
एकदा चाणक्य के ससुराल में विवाह था, उस समय उसकी पत्नी भी मायके गई। वहां उसकी धनाढ्य बहनों ने उसका उपहास किया। वह बेचारी अपने आपको अपमानित जानकर वापिस ससुराल लौट गई। तब चाणक्य को अर्थोपार्जन की चिन्ता हुई । तब उस ने अपनी पत्नी के सामने प्रतिज्ञा की कि जैसे भी होगा मैं विपुल धन उपार्जन करूंगा। उस ने धातुविद्या से स्वर्ण सिद्धि करना सीखा।
इधर नन्द से अपमानित होकर उसने नन्द सत्ता को उखाड़ फैकने की दढ़ प्रतिज्ञा की और चन्द्रगुप्त मौर्य को साथ में लेकर नन्द सत्ता को उखाड़ फेंकने में सफल हुमा । तथा चन्द्रगुप्त मौर्य को राज्याधिकारी बनाकर सम्राट बनाया।
1. प्राचार्य हेमचन्द्रकृत परिशिष्ट पर्व । 2. वात्सायनो मल्लिनाग, कुटिलश्चणकात्मजः ।
द्वामिलः पक्षिलस्वामी, विष्णुगुप्तोऽङ्गुलश्च ।। (हेमचन्द्र अभिघान चिंतामणि) 3. प्राचार्य हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्व।
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