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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
८ फिरोजपुर झिरका १० जनवरी सन् १९६७ ईस्वी को यहां से आठ मील दूर जमीन से तीन जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। श्री भगवतदयाल सरपंच अपना मकान बनवा रहे थे तब जमीन की खुदाई कराते हुए मिली थीं। ये मूर्तियां प्राचीन हैं। (देखें दैनिक मिलाप ऊर्दूता० ११-१-१९६७ ई०)
६. खोखराकोट जिला रोहतक यहाँ ता० १५-१०-१६६७ को कुशानकाल के (जैन) स्तूप प्राप्त हुए हैं। प्राचीन जैन मूर्तियाँ आदि तथा अनेक प्राचीन वस्तुएं भी मिली हैं (दैनिक ऊर्दू तेज ता० ६-१२-१९६७ ई०)
१० कुरुक्षेत्र थानेश्वर से छह मील दक्षिण पूर्व में खुदाई से स्वस्तिक आदि अनेक महत्वपूर्ण वस्तुएं मिली हैं । कुरुक्षक्ष की राजधानी थानेश्वर थी । (दैनिक ऊर्दू तेज ता० ६-१२-१९६६ ई०)।
११. अंबाला शहर यहां के श्वेतांबर जैन मंदिर का जीर्णोद्धार कराते समय नीव खोदने से तीन जैनप्रतिमाएं मिली है । इन में से दो तीर्थंकरों की हैं और एक पद्मावतीदेवी की है जिसके सिर पर पार्श्वनाथ की पद्मासन में प्रतिमा बनी हई हैं ।
___ इसी प्रकार पंजाब-सिंध से लेकर अफगानिस्तान तक स्थास-स्थान पर जैन मंदिरों के खंडहर, तथा जैनमूर्तियाँ खंडित-अखंडित मिलती रहती हैं । कांगड़ा-कुल्लु के सारे क्षेत्र में जिन मंदिरों के अवशेष तथा जिनप्रतिमाएं सर्वत्र बिखरी हुई पाई जाती हैं इसका उल्लेख हम पहले कर चुके हैं।
1. पंजोर, रोहतक, कैथल, थानेश्वर, जींद, हिसार, फिरोजपुर झिरका, कुरुक्षेत्र आदि सारे नगरों में श्वेतांबर
जैन यतियों की गद्दियां, श्वेतांवर जैन मंदिर-श्रावक परिवार तथा श्वेतांबर साधु विद्यमान थे प्राज कल इस क्षेत्र में श्वेतांवर जैनों का सर्वथा अभाव है । ये सब पुरातत्व सामग्री उन प्राचीन जैन श्वेतांबरों की है।
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