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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
उत्सवों में भी ये सदा सम्मिलित होते थे। महासभा की कार्यकारिणी के लाला पन्नालाल जी सुराणा बन्नूवाले सदस्य भी थे। सारे पंजाब और सिंध में मात्र उपयुक्त नगरों में ही खरतरगच्छीय जैन परिवार थे, बाकी सारे पंजाब में तपागच्छ के अनुयायी थे । पर इनमें गच्छों की हाड़मारी बिल्कुल नहीं थी।
प्रसिद्ध श्रावक १-शाबाजनगर (गंलिया नगरी से पूर्व की ओर एक मील की दूरी पर) में बागचर गोत्रीय प्रोसवाल भावड़ों का एक श्वेतांबर जैन परिवार जा कर प्राबाद हो गया । इस परिवार में लाला सोमशाह ज्योतिष और वैद्यिक विद्या के बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने अपने यहां घर-देरासर (घर-चैत्यालय) भी बनवाया था। जिसमें वह सदा पूजापाठ करते थे।
लतम्बर नगर में सुराणा परिवार के पुराने खानदान में लाला जेठाशाह भावड़ा हो गये हैं। वह रात के समय नगर से दो-तीन मील की दूरी पर जंगल में एक तालाब के किनारे ध्यान लगाया करते थे। एक दिन पूर्णमाशी की मध्यरात्री के समय वहां जंगल में वे क्या देखते हैं कि वहां एक प्रसिद्ध मुसलमान मौलवी मरा पड़ा था। थोड़ी देर बाद वह मौलवी जीवित होकर अपने-आप उठ खड़ा हुमा । जेठाशाह ने उस मौलवी से पूछा कि यह क्या बात है ? आप मर कर जीवित कैसे हो गये? मौलवी ने कहा कि मेरा यह भेद किसी को मत बतलाना और वरदान दिया कि लाला जी ! मापके घर सदा लक्ष्मी का निवास रहेगा। उसी दिन से जेठाशाह के परिवार में लक्ष्मी का सम्पूर्ण निवास हुमा । जिससे उनके वंशजों में प्राज भी धन की कमी नहीं है। उस मौलवी के वंशज पाकिस्तान बनने से पहले तक जेठाशाह के वंशजों से अनाज तक ले जाया करते थे । अाजकल इनके परिवार में शाह देसराज, शाह हेमराज, शाह धनराज तथा शाह शामलाल व शाह अनिलकुमार सुराणा गाजियाबाद में निवास करते है।
३ -कालाबाग (बागा नगरे सिंधुतटे) यहाँ पर बाफणा गोत्रीय प्रोसवाल भावड़े लाला जवायाशाह जैनागमों के अच्छे विद्वान् हो गये हैं। उन्होंने अनेक जैन शास्त्र स्वयं लिपिबद्ध किये है और तत्कालीन यतियों (पूजों) से भी कराये थे। यह विक्रम की १९वीं शताब्दी में विद्यमान थे।
६--गुजरांवाला गुजरांवाला शहर लाहौर से ४२ मील (लगभग ६६ किलोमीटर) उत्तर दिशा की तरफ पेशावर जाने वाली रेलवे मेन लाईन पर अवस्थित है । यह नगर जरनैली सड़क (जी०टी० रोड) की दाई बाई दोनों तरफ आबाद है । पाकिस्तान बनने(ई०स० १९४७) से पहले यहाँ की आबादी (जन संख्या) लगभग एक लाख की थी। जब इस नगर को बसाया गया था तब यहां कुजर जाति निवास करती थी। इस लिए इसका नाम कुजरांवाला पड़ा । बाद में बिगड़ कर गजरांवाला हो गया।
इस नगर की धरती के मालिक भी कुजर जाति के जाट थे । शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के दादा सरदार चरतसिंह (चड़तसिंह) ने इस धरती पर ई० स० १७५० (वि० सं० १८०७) को अपनी सेना की छावनी के रूप में स्थापन किया था और अपना निवास स्थान भी यहीं बनाया था। ईस्वी सन् १७७० (वि० सं० १८२७) में इसके पुत्र सरदार महासिंह ने इस नगर को बसाया
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