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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
(१७) आचार्य सिद्ध सूरि पाँचवा (वि० सं० ३७० से ४००) ने वीरपुर में चतुर्मास किया । मरुकोट (मरोट) में शांतिनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की।
(१८) आचार्य रत्नप्रभ सूरि (वि० सं० ४०० से ४२४) ने सिंध के डमरेल नगर में चौमासा किया । यहाँ सन्यासी से शास्त्रार्थ करके विजय पाई और उसे शिष्यों सहित जैन साधुओं की दीक्षाएं दीं। वीरपुर में चौमासा किया, मूला श्रावक को दीक्षा दी। यहाँ के शार्दूल श्रावक ने पूजा में प्रत्येक श्रावक-श्राविका को प्रभावना में लड्डू में पांच-पांच सोना मोहरे और पहरामनी (पौशाक) दी।
(१६) प्राचार्य यक्षदेव छठा (वि० सं० ४२४ से ४४०) ने सिंध के डमरेल नगर में श्रावक रूपा को दीक्षा दी । वीरपुर से पावशाह ने शत्रुजय का संघ निकाला। मरोटकोट में पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की।
(२०) प्राचार्य कक्क सूरि छठा (वि० सं० ४४० से ४८० में)-आपकी निश्रा में वीरपुर के श्रावक नारायण ने शत्रुजय का संघ निकाला । नारायणपुर में महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की।
(२१) प्राचार्य देवगुप्त सूरि छठा (वि० सं० ४८० से ५२०) ने वीरपुर में श्रावक डाल्हण को दीक्षा दी। मरोटकोट में भूता ने दीक्षा ली। वीरपुर से शाह मुकन्द ने शत्रुजय का सघ निकाला।
(२२) प्राचार्य सिद्ध सूरि छठा (वि० सं० ५२० से ५५८) ने लोहाकोट (लाहौर) में वीरदेव को दीक्षा दो और चतुर्मास किया। डमरेल में चतुर्मास किया, यहाँ सात महिलाओं को दीक्षा दी, अनेकों को जैन बनाया, कई पुरुषों की दीक्षाएं भी हुई। शालीपुर, वीरपुर, शिवनगर में आपने दीक्षाएँ दीं। वीरपुर से साँकला श्रावक ने शत्रुजय का संघ निकाला। मरुकोट में महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की।
(२३) विक्रम की दूसरी शताब्दी में जैनधर्म के कार्य करने वाले राजाओं के नाम१-राजा वीरधवल के बड़े राजकुमार वीरसेन ने दीक्षा ली। २-राजा देवसेन ने जैन मंदिर बनवाया और प्रतिष्ठा कराई । ३- राजा केतूसेन के पुत्र हालु ने मुनि वीरसेन से दीक्षा ली । ४--राजा रायसेन ने जैनतीर्थों का संघ निकाला। ५-राजा वीरसेन ने वीरपुर में महावीर का मन्दिर बनवाया और प्रतिष्ठा कराई ।
(२४) प्राचार्य कक्क सूरि सातवाँ (वि० सं० ५५८ से ६०१) ने वीरपुर में दीक्षाएं दी। डमरेल में दीक्षाएं दीं। देशल के मन्त्री राजसी ने शत्रुजय का संघ निकाला। वीरपुर के राजा ने शत्रुजय का संघ निकाला।
(२५) प्राचार्य देवगुप्त सूरि सातवाँ (वि० सं० ६०१ से ६३१) ने डमरेल में पार्श्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । स्यालकोट में रांका गोत्रीय खेत्ता के मल्लिनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । वीरपुर में प्राग्वाट पचा ने शत्रुजय का संघ निकाला।
(२६) प्राचार्य सिद्ध सूरि सातवें (वि० सं० ६३१ से ६६१) तथा देवगुप्त सूरि सातवें उमरेल होते हुए मालपुर पधारे । श्रावक प्रासल ने नौ लाख रुपया खर्च करके प्राचार्य श्री का
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