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हस्तिनापुर में जैनधर्म जिससे हस्तिनापुर विश्व का सर्वप्रथम तीर्थधाम बनगया। यह पंजाब का भी सर्वप्रथम जैन तीर्थ स्थापित हुआ।
(२) पंजाब में दूसरे धर्मचक्र नामक तीर्थ की स्थापना बाहुबली ने ऋषभदेव के तक्षशिला पधारने पर उनके चरण चिन्हों पर चरणबिंब (पादपीठ) की स्थापना कर उस पर धर्मचक्र की स्थापना की।
(३) श्री ऋषभदेव के समय से लेकर १२ चक्रवर्ती हुए। इनमें से चौथे से लेकर 6 वें चक्रवर्ती (इन छह चक्रवर्तियों) की राजधानी हस्तिनापुर में थी। इनका जन्म भी हस्तिनापुर में ही हुआ था। ये सब पहले मांडलिक राजा थे, बाद में छहखण्ड को जीतकर चक्रवर्ती बने । इन छह चक्रवर्तियों के पिता भी यहाँ के मांडलिक राजा थे और इनके पुत्र पौत्र आदि भी कई पीढ़ियों तक यहीं जन्मे और यहीं मांडलिक राजा होकर राज्य करते रहे। इन छह चक्रवर्तियों में से पाठवा चक्रवर्ती लोभवश मरकर नरक में गया। चौथा और नवां चक्रवर्ती दीक्षा लेकर सामान्य केवली बने और प्रायु पूर्ण करके निर्वाण पाये, सर्व दुःखों से मुक्त हुए। पाँचवें से सातवें चक्रवर्ती क्रमशः १६ वें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ, १७वें तीर्थकर श्री कुथुनाथ और १८वें तीर्थ कर श्री प्ररनाथ हुए और सम्मेतशिखर पर जाकर निर्वाण पाये । अतः पाठवें चक्रवर्ती के सिवाय पांच चक्रवतियों ने राजपाट और सर्वपरिग्रह का त्याग कर हज़ारों मनुष्यों के साथ यहीं पर श्रमण की दीक्षाएं ग्रहण की। सबने यहां पर कठिन तप करके केवलज्ञान प्राप्त किया। पिताओं, पुत्रों, पौत्रों और अनेकों ने सब परिग्रह का त्याग कर दीक्षाएं ग्रहण की और तपादि करके इसी धरा पर केवलज्ञान प्राप्त किया। अनेकों ने इसी भूतला पर निर्वाण भी प्राप्त किया। इन तीर्थंकरों, सामान्यकेवलियों तथा श्रमण-श्रमणियों ने सारे भारत में और विशेष रूप से सारे पंजाब जनपद में जैनधर्म का प्रसार किया। अब इन चक्रवतियों के विषय में कुछ विशेष विवरण लिखते हैं।
(४) चौथा चक्रवर्ती सनतकुमार पन्द्रहवें तीर्थकर श्री धर्मनाथ व सोलहवें तीर्थकर श्री शांतिनाथ के मध्यकाल में हुआ । इसके राजा पिता का नाम अश्वसेन और पट्टरानी माता का नाम सहदेवी था। इसका जन्म हस्तिनापुर में हुआ। यह पिता के बाद राज्य का अधिकारी माँडलिक राजा हुआ। बाद में छहखण्ड को जीतकर चक्रवर्ती बना और हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया । अन्त में राजपाट आदि सर्वपरिग्रह का त्याग कर आर्हती दीक्षा ली, तप करके केवल ज्ञान पाकर सामान्य केवली बना। शेष जीवनकाल में सर्वत्र जैनधर्म का प्रचार व प्रसार किया। अन्त में सर्वकर्म क्षय कर मोक्ष प्राप्त किया।
(५) पांचवें चक्रवर्ती शांतिनाथ हुए। प्रापके पिता राजा विश्वसेन तथा माता पट्टरानी पचिरा थी। आपका हस्तिनापुर में जन्म हुमा, युवावस्था प्राप्त होने पर आप ने राजा के योग्य सब विद्यामों और कलाओं का अभ्यास किया । पिता की मृत्यु के बाद आप मांडलिक राजा बने और छहखंड जीत कर चक्रवर्ती बने। इसका वर्णन आचार्य श्री नन्दीसेन सूरि कृत अजित शाँति स्तव गाथा ११ में इस प्रकार किया है
1. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र प्राचार्य हेमचन्द कृत पर्व १
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