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सिंधु सौवीर में जैनधर्म
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नगर प्रवेश कराया। इस अवसर पर इसने साधर्मियों को पहरामणी भी दी श्रौर याचकों को दान दिया । आपने यहीं चतुर्मास किया, ४२ नर-नारियों को दीक्षाएं दीं, मन्दिर की प्रतिष्ठा की । शत्रु जय, गिरिनार का संघ निकाला, ग्रासल को दीक्षा दी और प्राचार्य पद देकर सिद्ध सूरि नाम रखा । सिद्ध सूरि से वीरपुर में देसल ने दीक्षा ली, श्रादू के ऋषभदेव के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । लोहाकोट (लाहौर) के मंत्री ठाकुरसी ने यात्रा संघ निकाला ।
(२७) श्राचार्य देवगुप्त सूरि आठवाँ (वि० सं० ६८० से ७२४ ) - सिंध प्रांत में राव गोसल ने वि० सं० ६८४ में अपने नाम से गोसलपुर नगर बसाया । देवगुप्त सूरि ने इसे उपदेश देकर जैनधर्मी बनाया। इसकी वंश परम्परा सिंध में विक्रम की १४वीं शताब्दी तक रही । आखिर इसका वंशज लुणाशाह नामक गृहस्थ हुआ जो राजस्थान में चला गया । वहाँ उसका कुल लुणावत नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
( २८ ) प्राचार्य सिद्ध सूरि प्राठवाँ (वि० सं० ७२४ से ७७८ ) - पंजाब में सावत्थी (स्याल - कोट) में चतुर्मास किया और साधुओं को पदवियां प्रदान कीं । गोसलपुर पधारे वहां राव गोसल के पुत्र राव श्रासल आदि ने आचार्य श्री का बड़ी धूमधाम से प्रवेश कराया । चतुर्मास यहीं किया और दीक्षाएं भी दीं। डमरेल, वीरपुर और उच्चनगर में एक-एक चौमासा किया । साधुनों को पदवियाँ दीं । उच्चकोट, शिवनगर, मालपुरा, नारायणपुर तथा श्रासलपुर में पार्श्वनाथ के मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं कराई । लोहाकोट (लाहौर) से भेरोंशाह ने सम्मेतशिखर का संघ निकाला ।
( २ ) आचार्य कक्क सूरि नवाँ (वि० सं० ७७८ से ८३७) श्राचार्य सिद्ध सूरि आठवें ने गोसलपुर में कज्जल को दीक्षा दी और प्राचार्य पदवी देकर कक्क सूरि नाम रखा । पंजाब में दो चौमासे किये । हस्तिनापुर की यात्रा की । कोठीपुर (कांगड़ा) में महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की। सिंध में गगरकोट, शिवपुर में महावीर के मन्दिरों की प्रतिष्ठाएं कराई ।
वादिदेव सूरि ने काश्मीर में वादिसागर
(३०) भगवान महावीर की पट्टपरम्परा के ब्राह्मण को वाद में पराजित किया ।
(३१) श्राचार्य देवगुप्त सूरि नवां (वि० सं० ८३७ से ८६२ ) -- सिंध जनपद में विचरण करते समय यक्ष ने श्राप की सेवा में रहने का वचन दिया । सन्यासी को प्रतिबोध देकर शिष्यों सहित जैनधर्मी बनाया । पश्चात् वीरपुर के राव सोनग ने आप श्री का आडंबर पूर्वक नगर प्रवेश कराया । चतुर्मास यहीं पर किया । राव सोनग द्वारा बनवाये हुए महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की । गोसलपुर में चतुर्मास किया। वीरपुर डमरेल अनेकों ने दीक्षाएं ग्रहण कीं । डमरेलपुर में श्रीमाल देवल ने वीर विहरमान ( जीवत स्वामी) के प्रतिष्ठा कराई। शिवनगर के मन्त्री कोरपाल ने शत्रु जय का संघ निकाला ।
मन्दिर का निर्माण कराया और
(३२) श्राचार्य सिद्ध सूरि नवाँ (वि० सं० ८६२ से ६५२ ) ने वीरपुर पधार कर दीक्षाएं दीं और महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई ।
(३३) आचार्य कक्क सूरि दसवाँ ( वि० सं० १५२ से १०११) ने वीरपुर में दीक्षाएं दीं वीसलपुर में महावीर तथा आदीश्वर भगवान के मंदिरों की प्रतिष्ठाएं कराई । डमरेल से अर्जुन शत्रुंजय का संघ निकाला ।
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