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सिंधु- सौवीर में जैनधर्म
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३ - वि० सं० ५५२ में सा गांधी के पुत्र देशल ने दिल्ली में सात साधर्मीवात्सल्य किये संघ को घर पर बुलाकर प्रत्येक व्यक्ति की एक-एक सोने की मोहर से संघपूजा कीं ।
४ - वि० सं० ६१३ में मोपत सा के पुत्र अगरो- गोत्र गोलेच्छा ने जोगनीपुर (दिल्ली) से शत्रुंजय आदि तीर्थों का संघ निकाला। दिल्ली से शत्रु जय तक जाते हुए प्रत्येक गाँव और नगर के प्रत्येक साधर्मी को एक-एक सोनामोहर प्रभावना में दी ।
५ - सं० ८६१ में सा भानुजी के पुत्र काबड़ - गोत्र आर्य ने गोसलपुर में ८४ न्यातों का चारबार जीमनवार किया । पाँच साधर्मीवात्सल्य किये। संघपूजा में सोने की एक-एक मोहर दी । ६ - वि० सं० ९७४ में देदा सा के पुत्र कल्याण ने वीरपुर से शत्रु जय श्रादि तीर्थों का संघ निकाला | शत्रु जय तीर्थ पर बहत्तर लाख ( ७२०००००) सोना मोहरों की बोली लेकर ध्वजा चढ़ाई | संघपूजा में प्रत्येक व्यक्ति को पांच-पांच सोना मोहरे और पोशाक दी ।
७ - वि० सं० १३१२-१५ में सारे देश में महाभयंकर दुष्काल पड़ा उस समय भोसवाल महाजनों ने सारे देश में अन्न- चारा आदि देशवासियों को दान में दिया । सिंघ के राव पमीर को ८००० मूढ़ा धान दिया । दिल्ली के बादशाह को २१००० मूढ़ा धान दिया | कंदहार (गांधार) के राजा को १२००० मूढ़ा धान दिया । शेष जनता को ८०००० मूढ़ा धान दिया ।
८ - वि० सं० १५८२ में सा गोरब के पुत्र साचू - गोत्र पालेचा ने दिल्ली से संघ निकाल कर भारत की सब यात्राएं कीं । तीर्थ पर नौ लाख मूल्य का हार चढ़ाया ।
६ - वि० सं० १६७० में सा गोकुल के पुत्र सा हेमराज ने दिल्ली में म्लेच्छों ( मुसल - मानों) द्वारा कैद किये गये हिन्दुनों को करोड़ों द्रव्य देकर छुड़ाया | बावन जिनालय मन्दिर बनवा कर प्रतिष्ठा कराई । संघपूजा करके पाँच-पाँच सोना मोहरें प्रत्येक को प्रभावना में दीं।
विशेष घटनाएं
१ - प्राचार्य यक्षदेव ने सिंध के शिवनगर के मांडलिक राजा रूद्राट के बनाए हुए महावीर के जैनमन्दिर की प्रतिष्ठा कराई ।
२ - वि० सं० ६० में मांडलिक राव के राजकुंवर कक्कब ने दीक्षा ली और प्राचार्य पदवी पाकर कक्क सूरि बने ।
३ - वि० १०७ में तक्षशिला में जगमल राजा राज करता था । श्रावक जावड़ने श्री ऋषभदेव की प्रतिमा शत्रु जय पर्वत पर यहाँ से ले जाकर स्थापित कर तीर्थ का उद्धार किया । ४ - वि० सं० १९८ में राजा कनकसेन ने सिंध में वीरपुर नगर बसाया ।
५ - वि० सं० २८० में मानदेव सूरि ने नारदपुरी ( नाडोल - राजस्थान) में संस्कृत में लघु शान्ति स्तव बनाकर तक्षशिला के श्रावक के साथ तक्षशिला में भेजा और उसके पाठ द्वारा मन्त्रित जल को घरों में छिड़कने से महामारी का निवारण हुआ ।
६ - वि० सं० ६६४ में हर्षवर्धन का राज्याभिषेक हुआ ।
७ - विक्रम की ११ वीं शताब्दी में महमूद ग़ज़नवी ने तक्षशिला को जीता और उस का नाम गज़नी रखा |
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