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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधम
भाई थे । उदायन के प्रभावती से प्रभीची नाम का एक पुत्र था। उदायन की बहन का एक लड़का ( भानजा ) था, उस का नाम केशी था। प्रभावती रानी जैनश्राविका थी पर उदायन तापसों का भगत था । ' उदायन का परिवार तो इससे बड़ा था, परन्तु यहां पर इन्हीं के विषय में विवरण श्रावश्यक होने से मात्र इन्हीं के नामों का उल्लेखन पर्याप्त है ।
महारानी प्रभावती के महल में गौशीर्षचन्दन काष्ठ की महावीर स्वामी की एक अत्यन्त सुन्दर और महाचमत्कारी प्रभावित प्रतिमा विद्यनमालीदेव द्वारा निर्मित तथा कपिल केवली द्वारा प्रतिष्ठित थी । इस प्रतिमा पर कुंडल, मुकुट, गले में लटकते हार, बाजुबन्द श्रादि अनेक प्रकार के अलंकार अंकित थे । गले में देव द्वारा प्रदत्त फूलों की गाला भी थी जो कभी कुम्हलाती नहीं थी और जिस की सुगंध से दसों दिशाएं महक उठती थीं। इस की महक से आकर्षित भंवरे इस पर सदा मुंडलाते थे। यह प्रतिमा महावीर की गृहस्थावस्था की कायोत्सर्ग मुद्रा में थी । प्रभावती ने इसे अपने महल में घर चैत्यालय का निर्माण कराकर मूलनायक रूप में विराजमान किया हुआ था । " जैनागमों में ऐसी प्रतिमा को जीवितस्वामी की प्रतिमा कहा है ।
महारानी प्रभावती इस प्रतिमा की त्रिकाल ( प्रातः मध्याह्न, सायं ) पूजा, वन्दना, प्रारती आदि किया करती थी । 1 इस मंदिर की व्यवस्था और पूजा के लिये महारानी ने स्वर्णगुलिका नाम की एक दासी भी रखी हुई थी । जो युवा और प्रत्यन्त रूपवती थी । राजा उदायण भी प्रभावती की प्रेरणा से इस मंदिर में दर्शनादि करने कभी-कभी आया करता था ।
रानी प्रभावती ने यहां पर विराजमान जैनाचार्य से साध्वी की दीक्षा ग्रहण की और साध्वी मंडल के साथ स्व पर प्रात्मकल्याण के लिये अपना जीवन निर्यापन करते हुए इसी जनपद में विचरणे लगी । दासी स्वर्णगुलिका भी जीवतस्वामी की महारानी के समान ही त्रिसन्ध्या श्रद्धा और भक्ति से पूजा वन्दना करने लगी । एकदा उज्जयनी का राजा चंडप्रद्योत दासी और इस प्रतिमा का अपहरण करके उज्जयनी ले गया। इस प्रतिमा के बदले वैसे ही चन्दन और हूबहू वैसी ही प्राकृति की मूर्ति बनवाकर रातोरात यहां विराजमान कर गया । प्रातः काल जब उदायन मंदिर में गया तो उसने देखा कि प्रतिमा के गले में जो फूलों की माला है वह कुम्हलाई हुई है उसे लगा कि यह असली प्रतिमा नहीं है, उस के बदले में कोई दूसरी ही है । वहां दासी भी नहीं थी । संदेह हुआ कि दासी समेत प्रतिमा का कोई अपहरण करके ले गया है । खोज करने पर ज्ञात हुआ है कि उज्जयनी का राजा चंडप्रद्योत प्रतिमा और दासी का अपहरण करके ले गया है । उदायन ने उज्जयनी में युद्ध करके चंडप्रद्योत को हराया और उसे बन्दी बनाकर अपने साथ लेकर वापिस लौटा। उसके माथे पर दासीपति की छाप लगाई, प्रतिमा और दासी उज्जयनी से वापिस नहीं लाये । देवता के कहने से वहीं रहने दी ।
उदायन की रानी प्रभावती साध्वी की दीक्षा लेने के बाद आयु पूरी करके देवता हुई । इस देवता की प्रेरणा से राजा उदायन दृढ़ जैनधर्मी बना 14
1. उदायण राया तावस भत्तो (प्रावश्यक चूर्णि पत्र ३६९ ) ।
2. उत्तराध्ययन सूत्र भावविजय टीका अध्याय १८ श्लोक ८४ पत्र १८३/१
3. कल्पसूत्र
4. उत्तराध्ययन सूत्र भा० अ० १८ श्लोक २५
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