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संधु-सौवीर में जैनधर्म
१८५ लरकाना जिला में वाकराणी स्टेशन से लगभग २५ मील की दूरी पर मोहन-जो-बड़ो नामक जो स्थान है उसकी खुदाई होने से एक पुराना शहर खण्डहर रूप में मिला है । ज़मीन में । निकले हुए मकान तथा इमारतें बहुत आश्चर्य उत्पन्न करने वाले हैं। इस नगर में से जवाहरात, मिट्टी और धातु के बरतन, मूर्तियां आदि अनेक पुरानी चीजे निकली हैं । जब से इसकी बदाई हुई है तब से पुरातत्त्व के अभ्यासियों में खूब जिज्ञासा जागी है। इस शोध-खोज ने तो जगत के शोधकों को भारतवर्ष की संस्कृति की अत्यंत प्राचीनता पर मोहर छाप लगा दी है।
(२) सक्कर-जो-दडो-यह दूसरा स्थान भी लरकाना जिला में ही है । यहाँ से भी बहुत प्राचीन सिक्के मिले हैं।
(३) इनके अतिरिक्त ठट्ठा, साधबेला का मंदिर और इनके सिवाय ऐसे अनेक स्थान हैं कि जहाँ अति प्राचीन अवशेष मालूम पड़ते हैं ।
(४) काहू-जो-दड़ो-यह स्थान मीरपुर खास के निकट मिला है। ब्राह्मण वंश के दूसरे राजा चंदार के इस स्थान पर बनाए हुए बौद्ध संघाराम (मंदिर) निकला है। जैन मतियां भी निकली हैं।
(५) हरप्पा-यह स्थान माउंटगुमरी नगर के निकट है। इसकी खुदाई से भी प्राचीन मूर्तियां, सिक्के, बरतन प्रादि अनेक प्रकार की सामग्री प्राप्त हुई है। पुरातत्त्वज्ञ इस सामग्री को सिन्धुघाटी की सभ्यता का नाम देते हैं और इसे ईसा से ३००० वर्ष प्राचीन मानते हैं। इस सभ्यता को भारत में वैदिक आर्य सभ्यता से पहले की मानते हैं इसके अतिरिक्त-...
(६) कालीबंगा के उत्खनन से यह रहस्य अधिक स्पष्ट हो जाता है कि प्रागैतिहासिक युग में भी जैनधर्म का प्रचार और प्रसार उत्तर-पश्चिम भारत में रहा था । यहाँ से उपलब्ध जैन मतियां ईसा पूर्व ३०० वर्ष की कही जाती हैं । मौर्य-काल की कुछ मूर्तियां पटना (बिहार) म्यूज़ियम में भी सुरक्षित हैं। इसी प्रकार लगभग ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी की जैन-चित्रकला से भी स्पष्ट है। पुरातन लिपि में वीर संवत् ८४ का सबसे प्राचीन शिलालेख मिला है। मथुरा के जैन मतिलेख तो अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । इन लेखों से तो यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि भगवान महावीर की परम्परा के प्रखंड अनुयायी श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक ही हैं। यही महावीर की निग्रंथ परम्परा के वास्तविक वारसादार हैं। वि० सं० १३६ में दिगम्बर पंथ की स्थापना होने के पश्चात् महावीर का निग्रंथ संघ श्वेतांबर जैनसंघ के नाम से प्रसिद्धि पाया, वि० सं० १५३१ में लुकामत और १७०६ में ढं ढक मत निकलने के बाद महावीर का निग्रंथ संघ श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक संघ के नाम से प्रसिद्धि पाया।
(७) कदाचित किसी को खबर न हो कि आज जो गौड़ी जी पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मूलस्थान सिन्ध में ही था और पाकिस्तान बनने से पहले तक विद्यमान था। नगर पारकर से लगभग ५० मील दूर तथा गडरा रोड (बाड़मेर) से लगभग ७०-८० मील दूर गौड़ीमंदिर नामका एक गांव है। आस-पास में यहां भीलों की बस्ती है। शिखरबद्ध गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मंदिर है पर इस समय वहाँ मूर्ति प्रादि कुछ नहीं है। मंदिर जीर्ण___1. यारी सिंध यात्रा गुजराती-मुनि विद्याविजय जी ईस्वी सन् १६३६ पृ० १०-११
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