________________
१८४
मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
xx
है। मालूम होने से समताभाव से राजर्षि ने एक मास का अनशन किया और केवलज्ञान पाकर मोक्ष प्राप्त किया । प्रभावतीदेव ने राजर्षि उदायन की हत्या के कारण को जान कर प्रकोप से वीतभयपत्तन को धूल वृष्टि से ध्वंस कर दिया। उस में चंडप्रद्योत द्वारा स्थापित महावीर स्वामी की जीवितस्वामी की चन्दन की प्रतिमा भी दब गयी वह प्रतिमा अाज तक भूखनन करने पर भी कहीं प्राप्त नहीं हुई। राजा उदायण
महारानी प्रभावती १. जन्म
ई० पू० ६०० वर्ष आयु० | १. जन्म ई० पू० ५६४ वर्ष आयु० २. विवाह
,, ५८० ,, २० वर्ष | २. विवाह , ,, ५८० ,, १४ वर्ष ३. राज्यारोहण
२० वर्ष । ३. राज्यारोहण , , , , ,, , ४. पुत्र केशव का जन्म ,
| ४. पुत्र केशव जन्म,, ,, ५७५ , १६ , ५. अवंति पर चढ़ाई ,
xxx ६. दीक्षा
,, ५४ ,, ६. दीक्षा ,,, ५६६ , २५ ॥ ७. वीतभय का दट्टन , ५३५ ८. मृत्यु
" , , , , , ८. मृत्यु ,,, ५६७ ,, २७ , देवता विद्य न्माली प्रदत्त प्रतिमा तथा चंडप्रद्योत द्वारा निर्मित दोनों प्रतिमाए ऐसी थीं जिन पर कुडल, मुकुट, मालाएं, बाजुबन्द आदि अनेक प्रकार के अलंकार अंकित थे और पद्मासनासीन कायोत्सर्ग मुद्रा में थीं। इसका वर्णन कल्पसूत्रादि जैनागमों में पाया जाता है। ये दोनों प्रतिमाएं भगवान महावीर के दीक्षा लेने से पहले की गृहस्थावस्था की थीं। ऐसी जीवितस्वामी की अलंकार मंडित प्रतिमाए सब तीर्थंकरों की प्राचीनकाल से ही पूजी जाती प्रारही हैं । ये प्रतिमाए खड्गासन तथा पद्मासन में ध्यानस्थ मुद्रा में धातु, पाषाण, काष्ठादि की होती हैं। आज भी भूमिखनन से ऐसी प्रतिमाएं अनेक स्थानों से प्राप्त होती रहती हैं। तथा अनेक श्वेतांबर जैन मंदिरों के विद्यमान भी हैं।
__ एक ऐसी प्रतिमा धातु की खड़गासन में अकोटा से प्राप्त हुई है जो बड़ोदा म्युजियम में सुरक्षित है। इस प्रतिमा के नीचे का भाग खंडित हो जाने से लेख नष्ट हो गया है।
वर्तमान सिन्धुप्रदेश (पाकिस्तान) में अनेक प्राचीन स्थान ऐसे हैं जो पुरातत्त्व दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
(१) मोहन-जो-दड़ो----यह सिन्धु में सिन्धु नदी के तटवर्ती प्रदेश में एक ढेर के रूप में विद्यमान था । पुरातत्त्व विभाग ने इस का उत्खनन किया। इसमें ईसा से पूर्व ३००० वर्ष पुराने अनेक अवशेष मिले हैं । जिन में अर्हत् ऋषभ, सुपार्श्वनाथ आदि तथा शिव की सीलें मिली हैं जो बड़े महत्व की हैं। इस का विवरण हम पहले कर आये हैं ।
सिन्धु के एक इतिहासकार प्रो० भेरोमल ने 'मोहन-जो-दड़ो सम्बन्धी अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी है, उस में मोहन-जो-दड़ो का अर्थ मुर्दो का ढेर' किया है । प्रो. भेरोमल इसकी उत्पत्ति सम्बन्धी लिखता है कि यह नगर श्राप से रसातल में धंस गया था और वहां मुर्दो के ढेर लग गये थे। यह कथा प्रभावतीदेव द्वारा इस नगर को ध्वंस किये जाने की घटना के साथ कुछ रूपांतर से मिलती जुलती है विद्वानों का मत है कि यह स्थान प्राचीन काल का वीतभयपत्तन है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org