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सिन्धु-सौवीर में जैनधर्म
१७७ कुल क्षेत्र में भी सर्वत्र जैनमंदिरों के खंडहरों तथा मूर्तियों के लिए कहा है कि
Kulu is the valley of Gods. There are many temples with cilm place full National council of Educational research and training (New Delhi)
१०-पंजौर (चंडीगढ़ के निकट) वर्तमान हरियाणा सरकार ने पंजौर में मुग़ल सम्राट के बनाये हुए बाग़ को सुधारने और सजाने में स्तुत्य कार्य किया है। यह बाग़ सात मंजिला है। इसमें पानी के रंग-बिरंगे फव्वारे, रंगबिरंगे फूलों की फलवाड़ियां, चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली और बीच में पक्की सुन्दर नहर ने इस बाग़ की सुन्दरता को चारचांद लगा दिये हैं। इस बाग़ की सुन्दरता काश्मीर के बागों को भी मात दे रही है । सारे पंजाब (हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, सिंघ) में इसकी जोड़ी का कोई बाग़बगीचा-उपवन नहीं है। चंडीगढ़ और शिमला जाने वाले लोग इस बाग़ को देखने और सैर करने के लिए सदा लालायित रहते हैं। गर्मियों के मौसम में पर्यटकों की यहां बहुत चहल-पहल रहती है । निकटवर्ती लोग यहां पिकनिक के लिए आते रहते हैं । ऐसा यह सुन्दर दर्शनीय स्थान सबके मन को मोह लेता है।
इस बाग़ की खुदाई से प्राप्त और बाग़ के एक तालाब के किनारे पर पड़ी हुई जैनतीर्थकरों की खंडित प्राचीन मूर्तियों को सरकारी पुरातत्त्व विभाग ने प्राप्त किया है, जो कुछ वर्ष पहले कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में हरियाणा सरकार ने सुरक्षित कर दी हैं। ये मूर्तियां विक्रम की स्वी १०वीं शताब्दी की हैं । सरकारी पुरातत्त्व विभाग का कहना है कि पंजोर के आस-पास के क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर जैन मंदिरों-स्मारकों के खण्डहर तथा जैनमूर्तियां बिखरे पड़े हैं । आज से ३०० वर्ष पूर्व पंजौर में जैन श्वेतांबर ५२ जिनालय (विशाल जैनमंदिर) भी विद्यमान था। इस समय इस बाग़ के आस-पास एक भी जैनस्मारक विद्यमान नहीं है। पंजौर का पुराना नाम पंचपुर, पंचउर जैनग्रंथों में मिलता है । जैन कवि (मुनि माल)ने वि. की १७वीं शताब्दी में यहां चतुर्मास किया था। इस चतुर्मास में एक ग्रंथ की रचना प्रारंभ की और समाप्ति में उसे पूरा किया।
४ सिन्धु-सौवीर में जैनधर्म Shri P. C. Dass Gupta Director of Archaeology West Bengal Indicating sound reasons in Jain Journal of July 1971 p.p. 8 to 13 has Proved existence of Jainism in Sindhu Desu.Multan and Punjab and established(First Tirthankra) Rishabhanath Journey to Texila. Shri U. P. Shah also supports the view of his studies in Jain Art. Marshal has also suggested in his "A Guied to Texila. Cambridge 1960P. P. 8 that a few stupas at Texila could be Jaina. Hiuen Tsang also gave such accounts of Sinhpur District Jehlum which indicate that there were Swetambras practising their religion (Jainism) in the area. Among the monuments of Texila to be noted in conection with the propogation of early Jainism in North Western frontiers. most important is-"Shrine of the doubleheaded Eagle” which was described as probably of Jaina a origin by marshal in "A Guied of Texila. Calcutta 1918 P. 72." Significance of Eagle here may be
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