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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
जैनधर्म के प्रत्येक आचार-विचार की कसौटी अहिंसा ही है। जैनधर्म की इसी विशेषता के कारण विश्व का अन्य कोई भी धर्म इसकी समानता नहीं कर सकता। आज भी जैनों के अहिंसा, संयम, तप का पालन तथा मदिरा-मांसादि का त्याग सारे संसार में प्रसिद्ध हैं । इसीलिये यह धर्म "दया-धर्म" के नाम से आज भी जगद्विख्यात है। इसकी अलौकिक अहिंसा को देखकर आज के विचक्षण विद्वान् मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं। डा० राधा विनोद पाल Ex judge, International Tribunal for trying the Japanese War Criminals, ने अपने अभिप्राय में कहा है कि :--
If any body has any right to receive and welcome the delegates to any Pacifists' Conference, it is the Jain Community. The principle of Ahimsa, which alone can secure World Peace, has indeed been the special contribution to the cause of human development by the Jain Tirthankaras, and who else would have the right to talk of World Peace than the followers of the great Sages Lord Parshvanatha and Lord Mahavira ?
-(Dr. Radha Vinod Paul) अर्थात --विश्वशान्ति संस्थापक सभा के प्रतिनिधियों का हार्दिक स्वागत करने का अधिकार केवल जैनों को ही है, क्योंकि अहिंसा ही विश्वशान्ति का साम्राज्य पैदा कर सकती है और ऐसी अनोखी अहिंसा की भेंट जगत् को जैनधर्म के प्रस्थापक तीर्थंकरों ने ही की है। इसलिये विश्वशांति की आवाज प्रभु श्री पार्श्वनाथ और प्रभु श्री महावीर के अनुयायियों के अतिरिक्त दूसरा कौन कर सकता है ?
___ सारांश यह है कि जैनधर्म का पालन करने वाले व्यक्ति का जीवन कितना आदर्श होता है इस का परिचय पा लेने के पश्चात् पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं कि यदि इन सिद्धान्तों को मानव समाज आचरण में लावे तो विश्व में शाश्वत शान्ति कायम हो सकती है।
इसलिए जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म होने के साथ सर्व-जन-हिताय भी है। जिसकी अन्य कोई भी सिद्धान्त-धर्म बराबरी नहीं कर सकता । यह धर्म सदा सर्वदा जनकल्याणकारी रहा है, और रहेगा। इसमें संदेह नहीं है। हमारा तो दृढ़ विश्वास है कि यदि विश्व आज भी इन सिद्धान्तों को आचरण करने के लिए कटिबद्ध हो जावे तो आज का मानव विश्वव्यापक संहारकारक वातावरण से निजात पा सकता है।
हमारे इस मत की पुष्टि इस अध्याय में दिये गथे लोकमत संग्रह से शत प्रतिशत पूर्णतः हो जाती है । सुज्ञेषु किं बहुनः ।
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