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कांगड़ा (हिमाचल) में जैनधर्म
इय नगरकोट पमुक्ख ठाणिहिं जेय जिण मइ वंदिया।
ते वीर - लउकड देवी-जालमुखिय मन्नइ वंदिया ।। १७॥ अर्थात्--ये नगरकोट प्रमुख स्थानों में मैंने जो जिनेश्वर भगवन्तों को वन्दन किया है। वहां वीर लोंकड़िया तथा देवी ज्वालामुखी की मान्यता भी अनुभव की है।
४-कोरग्राम (बैजनाथ पपरोला) में श्री महावीर का जैनमंदिर
कांगड़ा जिला में बैजनाथ पपरौला जिसे प्राचीन समय में कीरग्राम कहते थे उसमें एक प्रसिद्ध विशाल शिवमंदिर है उसमें अब भी दो छोटे मंदिरों में जैनप्रतिमाएं विद्यमान हैं। एक मूर्ति तो वेदी के नीचे के भाग में लगी हुई है। यहां पाषाण की एक चौमुख जैनप्रतिमा भी थी जो अब यहां नहीं है। बड़े मंदिर के बाहरी भाग में खड़े एक खम्भे पर छोटे से जिनबिम्ब का आकार अंकित है।
यह प्राचीन मंदिर शिव वैद्यनाथ के नाम से प्रसिद्ध है । आज कल हिन्दुओं का यह मुख्यधाम है। यह मंदिर महावीर प्रभु का जैन मंदिर था। यहां भगवान महावीर की एक जैनप्रतिमा के सिंहासन पर एक लेख खुदा हुआ है । यह लेख एपिग्राफ़िया इंडिका के भाग १ पृष्ठ ११८ डा० जी बल्हर ने संक्षिप्त विवेचन के साथ प्रकाशित किया है। उसका उपयोगी भाग यहां दिया जाता है।
१-प्रोम् संवत् १२९६ वर्षे फाल्गुणदि ५ रवी कीरनामे ब्रह्मक्षत्र गोत्रोत्पन्न व्यय० मानू पुत्राभ्या व्य० दोल्हण-आल्हणाभ्यां स्वकारित श्री मन्महावीर जैनचैत्ये
२-श्री महावीर जिन मूलबिबं आत्मश्रेयो []] कारितं । प्रतिष्ठितं च श्री जिनवल्लभ सूरि संतानीय रुद्रपल्लीय श्री मदभयदेव सूरि शिष्यैः श्री देवभद्र सूरिभिः ।
भाषांतर ॐ [लौकिक वि. सं.] वर्ष १२९६ फाल्गुण वदि ५ के [दिन] कीरग्राम में ब्रह्मक्षत्र गोत्र के व्यापारी मान के दो पुत्रों व्यापारी दोल्हण और पाल्हण ने स्वयं के बनाये हुए श्रीमन् महावीरदेव के मंदिर में श्री महावीर जिन की मूल (मुख्य-मूलनायक) प्रतिमा अपने कल्याण के लिए करायी जिसकी प्रतिष्ठा श्री जिनवल्लभ सूरि के सन्तानीय रुद्रपल्लीय श्रीमत्सूरि अभयदेव के शिष्य देवभद्र सूरि ने की।
यह लेख (भगवान महावीर की प्रतिमा के) सिंहासन पर जैन नागरी अक्षरों में दो पंक्तियों में है। ये पंक्तियां सिंहासन के तीन तरफ़ चार बड़े और छोटे भागों में उत्कीर्ण है। लेख लगभग अच्छी अवस्था में है।
इससे यह स्पष्ट है कि यह शिवमंदिर भी पहले महावीर का जैनमंदिर था पश्चात् किसी समय शिवमंदिर के रूप में परिवर्तित हो गया है।
५-नूरपुर किले में जैनमंदिर__पठानकोट से कांगड़ा की तरफ़ जाते हुए ६ मील दूर नूरपुर का विशाल किला है इस किले के बड़े खुले मैदान में प्राचीन कला और कौशलयुक्त विशाल जैन मंदिर था जो आज खण्डहर के रूप में परिवर्तित हो चुका है । कछ सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के मूलगंभारे का भाग है जिसमें तीन प्रतिमाओं के विद्यमान होने के चिह्न हैं । इसके प्रांगन (रंगमंडप) की धरती पर मंदिर की भमती (फेरी) है।
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