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गांधार-तक्षशिला में जैनधर्म
सुहस्ति हुए। प्रार्य सुहस्ति ने मौर्य सम्राट अशोक के पौत्र सम्राट सम्प्रति मौर्य को प्रतिबोधित कर बारहव्रती श्रावक बनाया। अतः परमार्हत् सम्राट सम्प्रति के पाप धर्मगुरु थे। ६-आर्य सुहस्ति के पट्टधर-प्रार्य सुस्थित और प्रार्य सुप्रतिबद्ध थे। १०- इनके पट्टधर आर्य इन्द्रदिन्न सूरि, इनके पट्टधर ११–आर्य दिन्न सूरि, इनके पट्टधर १२—ार्य सिंह सूरि, इनके पट्टधर १३–आर्य वज्रस्वामी और इनके पट्टधर १४–आर्य वज्रसेन हुए।
(८) प्रार्य रोहगुप्त, (९) आर्य ऋषिगुप्त, (१०) प्रार्य श्रीगुप्त, (११) प्रार्य ब्रह्म और (१२) आर्य सोम ।
(१) आर्य सुस्थित से निग्रंथ गच्छ का नाम कोटिय गण प्रसिद्धि पाया। (२) आर्य सुप्रतिबद्ध से निग्रंथ गण का नाम काकंदिय गण प्रसिद्ध हुआ । (३) आर्य रोहण से उदेह गण हुमा। (४) आर्य भद्रयश से उडवाटिय गण हुमा।
(५) प्रार्य काद्धि से वेसवाटिक गण, (६) ऋषिगुप्त से माणक गण, (७) श्रीगुप्त से चारण गण निकला।
६-आर्य सुहस्ति के ७ शिष्यों के अलग-अलग सात गण स्थापित हुए जिसका विवरण नं० ५ में दिया है । उनके बाद उनके शिष्यों प्रशिष्यों का विहार क्षेत्र दूर-दूर देशांतरों में बट जाने से उनके अनेक गण और कुल अलग-अलग नामों से विख्यात होते गये जिसका विवरण नीचे दिया जाता है।
(१) प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम द्वारा रचित सूरि मंत्र का प्रार्य सुस्थित ने एक करोड़ बार जाप किया इसलिए इनसे निम्र थ गण का नाम कोटिय गण प्रसिद्ध हो गया।
___ इस गण से चार शाखाएं निकलीं-(१) उच्चनागरी, (२) विद्याधरी, (३) वजी और (४) माध्यमिका एवं चार कुल निकले-(१) वज्रलिप्त, (२) वस्त्रलिप्त, (३) वाणिज्यं, और (४) प्रश्नवाहनक ।
(२) प्रार्य सुस्थित के पांच शिष्य थे। (१) प्रार्य इन्द्रदिन्न, (२) स्थविर प्रियग्रंथ, (३) स्थविर विद्याधर गोपालक, (४) स्थविर ऋषिदत्त, (५) स्थविर अरिहदत्त ।
स्थविर प्रियनथ से १-मध्यमा शाखा निकली। २-स्थविर विद्याधर गोपालक से विद्याभरी शाखा निकली।
(१) आर्य इन्द्रदिन्न के प्रार्य दिन्न शिष्य थे । (२) आर्य दिन्न के दो शिष्य थे १–आर्य सिंहगिरि और २-प्रार्य शांतिश्रेणिक ।
आर्य शान्तिश्रेणिक से उच्चनगर (पंजाब के एक नगर) में उच्चनागरी शाखा निकली।
(३) आर्य सिंहगिरि के चार शिष्य थे-(१) स्थविर धनगिरि, (२) स्थविर आर्य समित, (३) स्थविर आर्य वज्र प्रौर (४) स्थविर प्रार्य अर्हदिन्न ।
१-मार्य समित से ब्रह्मदीपिका शाखा निकली और २-मार्य वज्र से वज्री (वयरी) शाखा निकली। इन्हीं शाखाओं के शिष्य-प्रशिष्यों से वाणिज्य, प्रश्नवाहनक (पेशावर पंजाब से), वत्थलिज्ज और बंभलिज्ज ये चार कुल निकले।
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