________________
कांगड़ा (हिमाचल) मैं जैनधर्म
१६६
समय कोई प्रतिमा नहीं है, परन्तु पाषाण निर्मित सिंहासन विद्यमान है जिस पर कभी तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान रही होगी।
(७) मंदिर नं० २ के सामने की दीवाल में सात-आठ देवता-देवियों की प्रतिमाएँ हैं । जिनमें एक प्रतिमा श्री नेमिनाथ के तीनमुखवाले गोमेध नामक शासनदेव की है, एक प्रतिमा जैन क्षेत्रपाल माणिभद्र की भी है।
(८) कांगड़ा शहर में दो जैनमंदिरों के खंडहर हैं। इन्हें यहाँ के लोग लक्ष्मीनारायण का मंदिर मानते हैं।
(8) एक अत्यन्त प्राचीन घिसा हुआ पत्थर जिसे ध्यानपूर्वक देखने से श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्पष्ट प्रतीत होती है । यह प्रतिमा अब भी किले के बाहर पुरातत्त्व विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित है।
(१०) कुछ वर्ष पहले दीवान श्री नरेन्द्रनाथ सी० ए० ने इस किले में खुदाई कराई थी। उस समय यहाँ से एक गोल पाषाण मिला था। उस पर प्राचीन लिपि में लेख खुदा हुआ है, उसमें
धर एक जैनसाधु जिनकी मासखमण (एक महीने) की तपस्या थी पारणे के लिए पधारे । अंबिणी ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति से उन्हें प्राहार-पानी दिया। सासू स्नान कर रही थी। उसने जब बाहर प्राकर देखा कि बहु ने जैनसाधु को आहार दिया है तब उसे बहुत डांटा और कहा कि कुलदेवता की पूजा करने से पहले साधु को प्राहार क्यों दिया है ? सोमदेव भट्ट को भी बहुत भड़काया और बहु अंबिणी को घर से बाहर निकाल दिया । बहु बेचारी दोनों बच्चों को साथ लेकर, छोटे को गोदी में और बड़े को हाथ की अंगुली पकड़ाकर घर से चल पड़ी। बहुत दूर निकल गई, भूखे-प्यासे बच्चे मां से भोजन और पानी मांगने लगे। बड़ी तलाश के बाद उसे एक सुखा तालाब दिखाई पड़ा। अंबिका के शील संतोष और साथ भक्ति के प्रभाव से जलाशय स्वच्छ जल से भर गया तथा एक सूखे हुए ग्राम के वृक्ष पर तुरन्त पके हुए हरे-भरे पाम्रफल लग गये। पाम्रफल खाने तथा पानी पीने से मां-बच्चों ने भूख प्यास मिटाई।
अंबिका के घर से निकल जाने के बाद जब उसकी सासु घर के अन्दर गई तो क्या देखती है कि जिन बर्तनों में से मुनि महाराज को आहार दिया था वे सब सोने के हो गये हैं और जो उन पात्रो में आहार बच गया था वे सब कण मोती बन गये हैं।
ऐसा चमत्कार देखकर सास के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और अपने बेटे सोमदेव को कहा कि जामो बह को खोज कर वापिस घर पर ले प्रायो। उसके शील-संतोष और मनिभक्ति के प्रभाव से पान स्वर्णमय और अन्न के कण मोती बन गये हैं। अंबिका सर्वथा निर्दोष है । हम ने उसे निकाल कर बडी भारी भल की है। सोमदेव भटट घर से चल पड़ा और अंबिका के पदचिन्हों को देखते हुए जंगल में उसके निकट पहचने ही वाला था कि अंबिका उसे देखते ही भयभीत हो गई। उस ने सोचा कि मेरा पति मेरी हत्या करने के लिये चला आ रहा है। जब से घर से निकली थी तभी से वह प्रभु नेमिनाथ के ध्यान में मग्न थी। उसने आव देखा न ताव पति के भय से कुएं में बचों समेत कूद गयी और मृत्यु पाकर सौधर्म देवलोक के कोहंड विमान में अंबिका नाम की बहुत ऋद्धि वाली देवी हुई। उत्पन्न होने वाले विमान के नाम से कोहंडीदेवी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। सोमदेव भी पास के कुए में कूदकर मर गया और उसी विभान से देव रूप में सिंह रुप में अंबिकादेवी की सवारी (वाहन) बना । इन्द्र ने अंबिका को नेमिनाथ की शासनदेवी स्थापित किया।
__ इस की आराधना करने से सम्यग्दृष्टि प्राणियों के मनोरथों की पूर्ण करती है और विघ्न बाधाओं का निवारण करती है तथा अनेक प्रकार की ऋद्धि, समृद्धि, और सिद्धियों को देती है । भूत-प्रेत-पिशाचराक्षस-, शाकिनी आदि के उपद्रव शांत हो जाते हैं और नये होते भी नहीं हैं। पुत्रकलत्र , मित्र, धन, धान्य, राजलक्ष्मी आदि की प्राप्ति होती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org