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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म काँगड़ा के कटौचवंशी राजाओं की राजवंशावली तथा समय
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क्रम | ई० स०
वि० सं०
राजा का नाम
विवरण
مع ل
| १३३०
६
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| १३१५ १३७२ | जयसिंह
इस वंशावली में कनिंघम ने राजाओं का | १३८७ | पृथ्वीचन्द्र
समय अंदाजन दिया है। ३ | १३४५ १४०२
पूरबचन्द्र ४ १३६० १४१७ रूपचन्द्र -
१. फिरोजशाह तुग़लक की आधीनता स्वीकारी ५ १३७५ १४३२ श्रृंगारचन्द्र
२. किले में आदीश्वर जैन मंदिर का मालिक । १४४७ मेघचन्द्र
३. महावीर की स्वर्णप्रतिमा तथा चौबीस
तीर्थंकरों की जवाहरातों की प्रतिमाओं वाले मंदिर को कांगड़ा किले में निर्माण
कराया। १४०५ | १४६२ | हरिश्चन्द्र प्रथम -ये दोनों भाई थे। १४२० । १४७७ | कर्मचन्द्र १४३५ १४६२ संसारचन्द्र प्रथम दिल्ली शासक मुहम्मदसैयद का समकालीन
(कर्मचन्द्र का पुत्र) १४५० | दीवानचन्द्र
(दीवानगा) १४६५ १५२२ नरेन्द्रचन्द्र -------- विज्ञप्ति त्रिवेणी से इसका समय वि० १४८४ १४८० १५३७ सुवीरचन्द्र
का है इस समय यहां संघ यात्रा करने पाया १४६५ | १५५२ | पराजचन्द्र (पराजगा)| था । १५१० १५६७ रामचन्द्र १५२८ १५८५ घर्मचन्द्र ------- (मृत्यु वि० सं० १५८५) १५६३
माणिक्यचन्द्र ये चारों दिल्ली के मुग़ल बादशाहों के प्राधीन . १५७० १६२७ जयचन्द्र
थे और उनको कर देते थे। १५८५
विरधिचंद्र (विधिचंद्र) १६१० १६६७ । त्रिलोकचन्द्र जहांगीर से राजद्रोह किया। १६३० १६८७ हरिश्चन्द्र (द्वितीय) १६५० १७०७ चन्द्रभान
औरंगजेब से राजद्रोह किया । १६७० १७२७ विजयराज
मृत्यु १६८७ ईस्वी सन् १६८७ भीमराज
१६६७ ईस्वी तक राज किया । १६६७ १७५४ पालमचन्द्र १७०० १७५७ हमीरचन्द्र १७४७. १८०४ अभयचन्द्र १७६१ १८१८
घमंडराज १७७३ । १८३० तेगराज
इससे सिख सरदार जयसिंह ने सन् ईस्वी
१६७४ में किला छीन लिया। ६ | १७७६ - १८३३ । संसा | संसारचन्द्र (द्वितीय) : ईस्वी सन् १७८५ में जयसिंह ने किला लोटा
दिया। बाद में गोरखों की लूट-मार से ३ वर्ष
तक अराजकता रही। १८२४ १८८१ अनरुद्धचन्द्र रणजीतसिंह ने गोरखों को हरा कर अनरुद्ध
को राज दे दिया। १८२६ । १८८६ रणवीरसिंह शेरे पंजाब महाराजा रणजीतसिंह ने कांगड़ा
राज्य पर पूर्ण अधिकार कर लिया ।
१६२०
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