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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
( १ ) प्रभु महावीर के निर्वाण ( ईसा पूर्व ५२७ ) के बाद उनके ११ गणधरों में से एक मात्र उनके पाँचवें गणधर श्री सुधर्मास्वामी छद्मस्थ थे जो वीर शासन के उत्तराधिकारी बने । क्योंकि प्रभु के संघ को निग्रंथ (परिग्रह की गांठ से रहित ) कहा है । इस लिये सुधर्मास्वामी की निश्रा में रहने वाला मुनिसंघ निर्ग्रथ गण ( गच्छ) के नाम से प्रसिद्धि पाया भगवान महावीर के (१) प्रथम पट्टधर सुधर्मास्वामी हुए, (२) इनके पट्टधर जम्बूस्वामी हुए ( इन दोनों ने केवलज्ञान पाकर निर्वाण प्राप्त किया) । जम्बूस्वामी का निर्वाण भगवान महावीर के ६४ वर्ष बाद राजगृही हुआ । के बाद दस बातों का विच्छेद (अभाव) हो गया १ - मनः पर्यव ज्ञान, २- - परमावधि ज्ञान, ३ - पुलाक्लब्धि, ४ आहारक शरीर, ५ - क्षपक श्रेणि, ६---उपशम श्रेणि, ७- -जिनकल्प, - तीन चारित्र (परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंप्राय यथाख्यात) ६ - - केवलज्ञान, १० - सिद्धपद | जम्बूस्वामी के ( ३ ) -- पट्टधर श्री प्रभवस्वामी, इनके पट्टधर (४) — श्री शय्यंभव सूरि, इनके पट्टधर ( ५ ) - श्री यशोभद्र, इनके पट्टधर ( ६ ) - श्री संभूति विजय और भद्रबाहु, ' इनके पट्टधर ( ७ ) - आर्य स्थूलभद्र, इनके पट्टधर ( 5 ) - श्रार्य महागिरि तथा आर्य
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1 - - ( १ ) संभूति विजय जी के १२ शिष्य थे - (१) नन्दनभद्र, (२) उपनन्द, (३) तिष्यभद्र, (४) यशोभद्र, (५) सुमनोभद्र, (६) मणिभद्र, (७) पूर्णभद्र, (८) स्थूलीभद्र, (९) ऋजुमति (१०) जम्बू, (११) दीर्घभद्र, (१२) पांडुभद्र ।
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२ – भद्रबाहु के चार शिष्य थे - (१) स्थविर गोदास, (२) स्थविर अग्निदत्त ( ३ ) स्थविर यज्ञदत्त, (४) स्थविर सोमदत्त |
(ब) स्थविर गोदास से गोदास गण निकला। इस गण से चार शाखाएं निकलीं :( १ ) ताम्रलिप्तिका, (२) कोटिवर्षका (३) पुण्ड्रवर्धनिका, (४) दासी खवटिका । ये चारों शाखाएं पूर्वी भारत में मगध देश के नगरों के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस से ज्ञात होता है कि भद्रबाहु स्वामी तथा उनके शिष्यों का मुख्य बिहार क्षेत्र अधिकतर मगध रहा होगा और भद्रहुश्रुतवली का स्वर्गवास भी उसी जनपद में हुआ होगा ।
३ - ( १ ) श्री प्रभवस्वामी, (२) श्री शय्यंभव सूरि, (३) श्री यशोभद्रसूरि, (४) श्री संभूतिविजय, ( ५ ) श्री भद्रबाहु प्रौर (६) श्री स्थूलिभद्र ; ये छः श्रुतकेवली (चौदह पूर्वी ) पट्टधर हुए । यहाँ तक ११ अंग और चौदह पूर्व के ज्ञाता श्रमण विद्यमान रहे ।
४ -- श्रार्यं महागिरि के ८ शिष्य थे - ( १ ) स्थविर उत्तर, (२) स्थविर बलिस्सह, (३) स्थविर धनाढ्य, (४) स्थविर श्रीभद्र, (५) स्थविर कौडिन्य ( ६ ) स्थविर नाग, (७) स्थविर नागमित्र (८) स्थविर रोहगुप्त ।
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(१) स्थविर रोहगुप्त ने अपना नया पंथ त्रैराशिक मत निकाला जो जैनधर्म के सिद्धान्तों के प्रतिकूल था । इसलिये रोहगुप्त को श्रागम में निन्हव कहा है ।
(२) श्रार्य महागिरि ने जिनकल्प की तुलना का श्राचार स्वीकार किया ।
(३) श्रयं सुहस्ति ने सम्राट सम्प्रति मौर्य की सलाह से अपने शिष्यों प्रशिष्यों को सारे भारत के प्रार्य -- श्रनार्य देशों में तथा भारत के बाहर भी जैनधर्म के प्रचार के लिये भेजा । श्रार्य सुस्थित, (२) आयं सुप्रतिबद्ध, (३) श्रार्य मेघ, (६) आर्य कामद्धि, (७) श्रार्य रक्षित
थे - ( १ )
५ - श्रार्य सुहस्ति के १२ श्रयं रोहण, (४) श्रयं भद्रयश,
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शिष्य (५)
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