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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
भयंकर भूकम्प इस विनाश में प्रकृति ने भी सहयोग देने में कमी नहीं रखी । काश्मीर में ईस्वी सन् १५५२, १६८०, १८२८, १८.५ में भयंकर भूकम्प प्राये । सन् १८८५ के भूकम्प से एक लाख तीस हजार वर्गमील क्षेत्र प्रभावित हुमा । लगभग ५०० वर्गमील क्षेत्र तो विशेष रूप से क्षतिग्रस्त हुआ था। लगभग तीस हजार मकान, तीस हजार पशु-पक्षी और तीन हजार मनुष्य मारे गये थे । इससे बारह मूला क्षेत्र सबसे अधिक क्षतिग्रस्त हुआ था। वहां एक किला, यात्री निवासस्थान, शहर का लगभग तीन चौथाई भाग नष्ट हो गया था।
औरंगजेब मुग़ल बादशाह औरंगजेब जो इतिहास प्रसिद्ध कट्टर मुसलमान था, उसने यहां के मंदिरों, मूर्तियों, धर्मग्रंथों को नष्ट-भ्रष्ट करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी।
जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया हिन्दू आदि सब अमुसलिमों को मुसलमान लोग काफ़िर के नाम से सदा घृणापूर्वक सबाधित करते पाये हैं और भारत को काफ़रिस्तान कहते चले आ रहे हैं । इन लोगों ने सदा काफ़िरों को तलवार की घाट उतारने में स्वाब (पुण्य) माना है।
काश्मीर आदि काफरिस्तान जनपदों पर कालांतर में अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान अमीर अब्दुलरहमान का अधिकार हो गया। यहां के लोगों को बलात्कार से मुसलमान धर्म में प्रवर्तित कर लिया गया। उनके बच्चों को काबुल आदि में लेजा कर इसलाम धर्म की शिक्षा के लिए अपने मदरसों (स्कूलों) में भरती करके कुरान आदि पढ़ाये गये। जिन्होंने इसलाम धर्म स्वीकार नहीं किया उनकी हत्या कर दी गई (बाबू क्रिश्चियन लोस्सन लिपजिंग रा० ६६, १८७४; अस्तर्बुम्स कुणे भाग २ पृष्ठ २८५)।
इस प्रकार काश्मीर में हमारे देवमंदिरों, देवमूर्तियों, धर्मग्रंथों तथा जैनधर्मानुयायियों का सफाया कर दिया गया।
माजकल सारे काश्मीर जनपद में जैनों के बहुत थोड़े परिवार जो अन्य जनपदों से जाकर वहां बस गये हुए हैं विद्यमान हैं।
हमने जम्मू, पूंछ प्रादि क्षेत्र को काश्मीर जनपद में नहीं लिया, क्योंकि प्राचीन काल में इस
पृथ्वी फटकर प्रलय हो जाएगा।" एकदा एक वजूछाती वाला सिपाही कुल्हाड़ी लेकर ऊपर चढ़ा मौर मूर्ति के गाल पर ऐसे जोर से कुल्हाड़ी मारी कि वह टुकड़े-टुकड़े होकर धराशायी हो गई। न फूटा आकाश पौर न ही फूटी पृथ्वी । वे तो पूर्ववत् अपने असली रूप में ही विद्यमान रहे । कुछ भी न हुआ।
गिवन ने यह बतलाया है कि मूर्ति के अद्भुत सामर्थ्य पर सत्यासत्यता की मान्यता कितनी है। मूर्ति लकड़ी, पत्थर, धातु मादि की बनाई जाती है उसमें वैषम्यमय अद्भुत सामथ्र्य होना कैसे सम्भव हो सकता है ? पैता सामयं तो अपनी भक्ति में हो रहा हुआ है।
मानो इस प्रकार की मूर्तिपूजा के विषय में भोलेपन की मान्यताओ को दूर करने के लिए मुसलमान महमूद गजनवी मादि लोगो ने मन्दिरो और मूर्तियो को बेहिसाब सोने-चांदी से लादना चोरो, डाकुमो और नटेरो को निमन्त्रण देना है। इसी चिनौती के लिए भाक्रमण किए गए थे।
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