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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
३ - मुनि बाहुबली चाहते थे कि उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो जावे, पश्चात् वह भगवान ऋषभदेव के समवसरण में जावेंगे। किन्तु संज्वलन मान के सद्भाव के कारण एक वर्ष तक कठोर तप करने पर भी उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अंत में श्री ऋषभदेव की प्रेरणा से ब्राह्मी और सुन्दरी नामक दो साध्वियों ने (जो ऋषभ की पुत्रियाँ और बाहुबली की बहनें थीं) जहां बाहुबली कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े थे, वहां प्रायीं और उन्होंने बाहुबली मुनि को वन्दना करके हाथ जोड़कर विनम्रभाव से कहा "भाई ! जब तक आप मानरूपी हाथी पर आरूढ़ हैं तब तक आप को केवलज्ञान की प्राप्ति संभव है । जब तक संज्वलन मान कषाय का भी त्याग नहीं करोगे तब तक आप की सर्व धर्मकरनी निष्फल है । अतः मान कषाय का भी त्याग करो ।" बाहुबली ने अपनी भूल को समझा और मान कषाय का भी सर्वथा त्याग करके अपने से पहले दीक्षित हुए ६८ छोटे भाईयों को वन्दन करने के लिये कायोत्सर्ग को पार कर चलने के लिये कदम उठाया और प्रभु के समवसरण में जाने को तैयार हो गये । संज्वलन कषाय के त्याग करते ही शुक्ल ध्यानारूढ़ हो गये और तुरन्त तक्षशिला में ही केवलज्ञान हो गया ।' पश्चात् सतत विचरण करते हुए सारे पंजाब तथा भारत में जैनधर्म का प्रचार किया । इस से स्पष्ट है कि श्री ऋषभदेव के समय में स्वयं ऋषभदेव तथा इन के श्रमण श्रमणियों ने सारे पंजाब जनपद में भी जैनधर्म का प्रचार व प्रसार किया ।
४ – यद्यपि इन के बाद के जैन तीर्थंकरों के विहार के स्थलों का विवरण उपलब्ध नहीं है तथापि सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ, सत्रहवें श्री कुंथुनाथ, अठारहवें श्री अरनाथ के जन्म, दीक्षा केवलज्ञान आदि हस्तिनापुर में होने से, बाईसवें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि की सर्वत्र पंजाब में मान्यता होने से एवं उन्नीसवें मल्लिनाथ, बीसवें मुनिसुव्रत स्वामी, तेईसवें श्री पार्श्वनाथ, चौबीसवें श्री महावीर स्वामी आदि अनेक तीर्थंकरों तथा उनके श्रमण-श्रमणियों के (दिल्ली से लेकर काश्मीर-पेशावर, तक्षशिला, सिंध आदि) सारे पंजाब में भी विहार तथा धर्मप्रचार के संकेत मिलते हैं इस का खुलोसा हम प्रसंगोपात श्रागे करते रहेंगे । भगवान महावीर के समय और उस के बाद के समय का संक्षिप्त विवरण देंगे ।
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५ – प्रभु महावीर के समय में पुण्ड्र जनपद की राजधानी पुण्ड्रवर्धन ( वर्तमान पेशावर पाकिस्तान में ) थी। भगवान महावीर के समय में वहां 'सिंहस्थ' नाम का राजा राज्य करता था । एकदा उत्तरापथ के किसी राजा ने सिंहरथ को दो घोड़े भेंट किये। उनमें से एक घोड़ा उल्टी शिक्षा पाये हुए था। राजा सिंहरथ उस वक्र शिक्षा वाले घोड़े पर बैठा और अपने पुत्र तथा सेना के साथ नगर से बाहर क्रीड़ा करने के लिए निकला । घोड़े की चाल तेज करने के लिए चाबुक मारी । चाबुक लगते ही घोड़ा बेतहाशा दौड़ा। राजा घोड़े को रोकने के लिये रास को जितना खेचता है, घोड़ा उतना ही तेज दौड़ता चला जा रहा है, रुकने का नाम ही नहीं लेता । इस प्रकार घोड़ा दौड़ता हुआ राजधानी से १२ योजन' दूर एक भयावने जंगल में पहुंच गया। रास खेचते- खैचते थक जाने के कारण
1. दिगम्बर साहित्य बाहुबली की राजधानी पोदनपुर (महाराष्ट्र दक्षिण भारत में मानता है । इस मत के अन सार ऋषभ, बाहुबली, भरतादि का संबंध पंजाब से न होकर दक्षिण भारत के साथ माना जाता है । यही कारण है कि दिगम्बरों ने बाहुबली की अनेक बड़ी-बड़ी खड़ी प्रतिमायें दक्षिण भारत में स्थापित की हैं । दिगम्बर साहित्य तथा शिलालेखों में दिगम्बर पंथ का संबन्ध पंजाब के साथ कदापि रहा हो ऐसा कोई उल्लेख अथवा संकेत नहीं मिलता ।
2. योजन चार कोस का है । कोस दो हजार धनुष का है। धनुष दो गज़ ( ६फुट) का है अत: ४ X २०००X २=१६०००गज़ का एक योजन और १२ योजन १६२००० गज लगभग १७३ किलोमीटर का हुआ ।
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