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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
१-प्रारंभी हिंसा, २-उद्योगी हिंसा, ३-विरोधी हिंसा और संकल्पी हिंसा ।'
१-आरंभी हिंसा-जीवन निर्वाह के लिए, आवश्यक भोजन पान के लिए, और परिवार के पालन-पोषण के लिए अनिवार्य रूप से होने वाली हिंसा-प्रारंभी हिंसा है।
२-उद्योगी हिंसा-गृहस्थ अपनी प्राजीविका चलाने के लिए कृषि, गोपालन, व्यापार आदि, कल-कारखाने लगाता है और उन उद्योगों में हिंसा की भावना न होने पर भी हिंसा होती है । वह उद्योगी हिंसा है।
३-विरोधी हिंसा-अपने प्राणों की रक्षा के लिए, कुटुम्ब परिवार की रक्षा के लिए अथवा आक्रमणकारी शत्रुओं से देशादि की रक्षा के लिए की जाने वाली हिंसा-विरोधी हिंसा है।
४-संकल्पी हिंसा -किसी निरापराधी प्राणी को जान बूझकर मारने की भावना से हिंसा करना-संकल्पी हिंसा है।
उपर्युक्त चार प्रकार की हिंसा से गृहस्थ पहले व्रत से संकल्पी हिंसा का त्याग करता है। और शेष तीन प्रकार की हिंसा में से यथाशक्ति त्याग करके-- अहिंसा का पालन करता है।
अहिंसा व्रत का शुद्ध रूप से पालन करने के लिए इन पांच दोषों से बचना चाहिए...2 १-किसी जीव को मारना, पीटना, त्रास देना। २-किसी का अंग-भंग करना, किसी को अपंग बनाना, विरूप करना ।
३-किसी को बन्धन में डालना, यथा तोते-मैना आदि पक्षियों को पिंजरे में बन्द रखना। कुत्ते आदि को रस्सी से बांध रखना । ऐसा करने से उन प्राणियों की स्वाधीनता नष्ट हो जाती है और उन्हें व्यथा पहुंचती है।
४–घोड़े, बैल, खच्चर, ऊंट, भैसे, गधे आदि जानवरों पर उनके सामर्थ्य से अधिक बोझ लादना । नौकरों से अधिक काम लेना ।
५- अपने आश्रित प्राणियों को समय पर भोजन पानी न देना। गृहस्थ की अहिंसा के लिए कहा है कि----- "जीवा सुहुमा थूला, संकप्पारंभो भवे दुविहा । सावराह निरवराहा, साविक्खा चेव निरविक्खा"।
अर्थात् - जगत में जीव दो प्रकार के हैं; स्थावर और त्रस । स्थावर दो प्रकार के है सूक्ष्म और बादर । इनमें से सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती नहीं, क्योंकि अतिसूक्ष्म जीवों के शरीर को बाह्य शस्त्र का घाव नहीं लगता । परन्तु यहाँ तो बादर स्थूल पृथ्वीकाय, जल काय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय स्थावर जीवों से प्रयोजन है । गृहस्थ से इसकी अहिंसा पलती नहीं। क्योंकि सचित पाहार आदि तथा अन्य काम काज करते हुए इनकी अवश्य हिंसा होती है। इसलिए स्थावर की हिंसा का त्याग गृहस्थ के लिये असंभव है। अब त्रस जीव रहा। इसकी हिंसा के भी दो भेद हैं-संकल्प से तथा प्रारम्भ से । इसमें प्रारंभ हिंसा का श्रावक को त्याग असंभव है क्यों कि गृहस्थ को मकान, दुकान आदि के निर्माण आदि कार्यों में हिंसा होती है। अब संकल्प की हिंसा
1. प्रश्नव्याकरणसूत्र-आश्रव द्वार 2. उपासकदशांग सूत्र अ० १
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