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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म के लिये विरोधी दोषों का स्वरूप यथार्थ रूप से समझना भी जरूरी है। अहिंसा सत्कार्य है और इसका विरोधी हिंसा असत्कार्य है । हिंसा का स्वरूप इस प्रकार है--
प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा । (तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ७ सूत्र ८)
अर्थात्--प्रमत्तयोग से होने वाला प्राणवध-यह हिंसा है । यहाँ हिंसा की व्याख्या दो अंशों में की गई है । पहला अंश है---प्रमत्तयोग अर्थात् राग-द्वेषपूर्वक किंवा असावधान प्रवृत्ति । तथा दूसरा अंश है-प्राणवध । पहला अंश कारण रूप है तथा दूसरा कार्य रूप है। इससे फलितार्थ यह हुआ कि जो प्राणवध प्रमत्तयोग से हो वह हिंसा है। प्रमादयोग के बिना प्राणवध हिंसा की कोटी में नहीं पाता । अतः शास्त्रकार ने जिसको हिंसा कहा है उससे निवृत्त होना ही अहिंसा है। यह श्रावक श्राविका का पहला स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत है।
(२) सत्याणुव्रत
दूसरा है स्थूल मृषावाद विरमण व्रत- अर्थात् स्थूल झूठ का त्याग । असत् चिंतन, असत् भाषण और असत् आचरण ये सभी झूठ (असत्य) दोष में आ जाते हैं । अर्थात् असत्य शब्द के संक्षेप में दो अर्थ करने से यहाँ काम चल जाता है --
१-जो वस्तु अस्तित्व रखती हो उसका बिल्कुल निषेध करना। अथवा निषेध न भी करें लेकिन जिस रूप में वस्तु हो उसे उस रूप में न कह कर अन्यथा कथन करना- वह असत्य
२–गहित-असत्-अर्थात् जो सत्य होने पर भी दूसरे को पीड़ा पहुंचावे, ऐसे दुर्भावयुक्त कथन कहना वह भी असत्य है।
सत्य का पालन करने के लिये पांच दोषों से बचना चाहिये
१-मिथ्या उपदेश-~घर, दुकान, खेत आदि जमीन के सम्बन्ध में, पशु-पक्षियों के संबंध में, वर-कन्या के सम्बन्ध में असत्य बोलना । श्री वीतराग केवली भगवन्तों के सिद्धान्तों को उनके कथन के विपरीत कहना । दूसरों को दुःखी करने के लिये उन्मार्ग का प्रतिपादन करना । अनाचारकदचार के साधनों तथा प्रचार का उपदेश करना। सत्य जानने पर भी असत्य कहना या कहलाना । असत्य उपदेश देना । इत्यादि ।
२-न्यासापहार–किसी व्यक्ति की अमानत रखी हुई वस्तु को उसे वापिस देने से इनकार करना अथवा समय पर न देना, स्वयं उपयोग कर लेना, गायब कर देना, बदल देना। व्याज पर रखी हुई वस्तु की रकम पा लेने पर भी उसे देने से इनकार करना इत्यादि ।
३-रहस्याभ्याख्यान-रहस्य का कथन
भाई, बहन, माता, पिता, पत्नी-पति, स्वजन, सम्बन्धी प्रादि की गुप्त बात को प्रगट करना । ऐसा करने से कभी-कभी तो उसे भारी आघात पहुंचता है और उस व्यक्ति को प्रात्महत्या करने का प्रसंग भी पा जाता है ।
४-झूठी साक्षी-झूठा लेख
पागम विरुद्ध कहना अथवा लिखना, किसी के नाम झूठा पत्र लिखना, झूठे बही-खाते बना लेना, झूठी मोहर छाप बना लेना, कम ज्यादा लिख लेना, अंकों को तोड़-मरोड़-खुरचकर बदल देना तथा झूठी साक्षी देना।
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