________________
२४
लेश्या - कोश
वीरे इ वा सेय बंधुजीवए इ वा भवेयारूवे ? गोयमा ! णो इट्ठे समट्ठ े । सुक्कलेसा तरिया चैव मणुण्णतरिया चेत्र ( मणामतरिया चेव ) वन्नेणं पन्नत्ता ।
- पण्ण० प १७ । ४ । सू ३६ । पृ० ४४७ खीरपूरसमप्पभा ।
(ख) संखं ककुंदसंकासा, रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ॥
(ग) सुक्कलेस्सा सुकिल्लएणं वन्नेणं साहिज्जइ ।
- उत्त० अ ३४ । गा ८ | पृ० १०४६
४ । सू ४० | पृ० ४४७
अंकरत्न, शंख, चन्द्र, कुंद- मोगरा, पानी, पानी की बूँद, दही, दहीपिण्ड, क्षीर दूध, खीर, शुष्क फली विशेष, मयुर पिच्छ का मध्यभाग, अग्नि में तपा कर शुद्ध किया हुआ रजतपट्ट, शरतकाल का मेघ, कुमुददल, पुंडरीक दल, शालिपिष्टराजी, कुटज पुष्प राशी, सिंदुवार पुष्प की माला, श्वेत अशोक, श्वेत केनर, श्वेत बन्धुजीव, मुचकन्द के फूल, दूध की धारा, रजतहार आदि के वर्ण की श्वेतता से अधिक इष्टकर, कंतकर, प्रीतकर, मनोज, मनभावने श्वेतवर्णवाली शुक्ललेश्या होती है ।
पंचवर्ण में शुक्ललेश्या श्वेत-शुक्ल वर्णवाली है ।
द्रव्यलेश्या के छहों भेद दो गन्धवाले हैं ।
- पण्ण० प १७ ।
- १२ द्रव्यलेश्या की गन्ध
कण्हलेस्सा णं भन्ते ! कइ x x x गन्धा x x x पन्नता ? गोयमा ! दव्वलेस्सं पडुच्च xxx दुगन्धा ××× एवं जाव सुक्कलेस्सा ।
-भग० श १२ । उ ५ । प्र १६ | पृ० ६६४
Jain Education International
१२.१ - प्रथम तीन लेश्या दुर्गन्धवाली हैं ।
(क) कइ णं भंते! लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तंजहा - कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा । - पण्ण० प १७ | उ ४ । सू ४७ | पृ० ४४७
-ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० ( उत्तर केवल )
(ख) जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एन्तो वि अणंत्तगुणो, लेसाणं अप्पसत्थानं ॥
- उक्त० अ ३४ । गा १६ । पृ० १०४२
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org