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लेश्या-कोश सलेशी अनंतरपर्याप्त जीव-दंडक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना, जैसा अनंतरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दंडक के सम्बंध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बंधन के विषय में कहा है। •७४.६ सलेशी परंपरपर्याप्त जीव और कर्मबंधन :
परंपरपज्जत्तएणं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्द सो तहेव निरवसेसो भाणियव्यो।
-भग० श २६ । उ ६ । प्र १ । पृ• ६०२ सलेशी परंपरपर्याप्त जीव-दंडक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना, जैसा परंपरोपपन्न विशेषण वाले सलेशी जीव-दंडक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बंधन के विषय में कहा है। •७४.१० सलेशी चरम जीव और कर्मबंधन :--
चरिमेणं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव चरिमेहिं निरवसेसो।।
-भग० श २६ । उ १० । प्र १ । पृ०६०२ सलेश जीव-दंडक के सम्बन्ध में वैसे ही कहना, जैसा परंपरोपपन्न विशेषण वाले सलेश' दंडक के सम्बन्ध में पापकर्म तथा अष्टकर्म बंधन के विषय में कहा है।
टीक। ... र के अनुसार चरम मनुष्य के आयुकर्म के बंधन की अपेक्षा से केवल चतुर्थ भंग ही घट सकता है ; क्योंकि जो चरम मनुष्य है उसने पूर्व में आयु बांधा है, लेकिन वर्तमान में बांधता नहीं है तथा भविष्यत् काल में भी नहीं बांधेगा । •७४.११ सलेशी अचरम जीव और कर्मबंधन :
___ अचरिमे णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा! अत्थेगइए० एवं जहेव पढमोहसए, तहेव पढम-बिइया भंगा भाणियव्वा सव्वत्थ जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं ।
सलेस्से णं भंते ! अचरिमे मणुस्से पावं कम्मं किं बंधी० ? एवं चेव तिन्नि भंगा चरिमविहूणा भाणियव्वा एवं जहेव पढमुद्दे से । नवरं जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से केवलनाणी य अजोगी य ए ए तिन्नि वि न पुच्छिज्जंति, सेसं तहेव । वाणमंतर-जोइसियवेमाणिए जहा नेरइए। अचरिमे णं भंते ! नेरइए नाणावरणिज्जं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! एवं जहेव पावं०। नवरं मणुस्सेसु सकसाईसु लोभकसाईसु य
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