________________
लेण्या-कोश
२५७ ज्ञानों की प्राप्ति में अध्यवसायों के शुभतर होने के साथ लेश्या परिणाम भी विशुद्धतर होते हैं। इसी प्रकार अध्यवसाय के अशुभतर होने के साथ लेश्या की अविशुद्धि घटती है।
ऐसा मालूम पड़ता है कि छों लेश्याओं में प्रशस्त-अप्रशस्त दोनों प्रकार के अध्यवसाय होते हैं।
पज्जत्ता असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए xxx तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तिन्नि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा -- कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा। xxx तेसि गं भंते ! जीवाणं केवइया अज्भवसाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पन्नत्ता । ते णं भंते ! किं पसत्था अपसत्था ? गोयमा ! पसत्था वि अपसत्था वि।।
-भग० श २४ । उ १ । प्र ७, १२, २४, २५ | पृ०८१५-१६ सव्वट्ठसिद्धगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए० १ सा चेव विजयादिदेव वत्तव्वया भाणियव्वा । नवरं ठिई अजहन्नमनुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। एवं अणुबंधो वि । सेसं तं चेव ।
--भग० श २४ । उ २१ । प्र. १७ । पृ० ८४६ उपरोक्त पाठों से यह स्पष्ट है कि कृष्ण, नील तथा कापोत लेश्या वाले जीवों में प्रशस्त तथा अप्रशस्त दोनों अध्यवसाय होते हैं तथा शुक्ललेश्या में भी दोनों अध्यवसाय होते हैं। अतः छओं लेश्याओं में दोनों अध्यवसाय होने चाहिये।
'६६ २० किस और कितनी लेश्या में कौन से जीव :'EE २०१ एक लेश्या वाले जीव :--
कृष्णलेश्या वाले जीव--(१) तमप्रभा नारकी, (२) तमतमाप्रभा नारकी। नीललेश्या वाले जीव-(१) पंकप्रभा नारकी। कापोतलेश्या वाले जीव-(१) रत्नप्रभा नारकी, (२) शर्कराप्रभा नारकी।
तेजोलेश्या वाले जीव-(१) ज्योतिषी देव, (२) सौधर्म देव, (३) ईशान देव, (४) प्रथम किल्विषी देव।
पद्मलेश्या वाले जीव-(१) सनत्कुमारदेव, (२) माहेन्द्रदेव (३) ब्रह्मलोकदेव, (४) द्वितीय किल्विषी देव।
शुक्ललेश्या वाले जीव-(१) लान्तक देव, (२) महाशुक्रदेव, (३) सहस्रार देव, (४) आनत देव, (५) प्राणत देव, (६) आरण देव, (७) अच्युत देव, (८) नव अवेक देव,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org