Book Title: Leshya kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 321
________________ लेश्या-कोश (झ) से नूनं भंते! कण्हलेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावत्नत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ ? इत्तो आढत्त जहा चउत्थओ उद्द सओ तहा भाणियव्वं जाव वेरुलिय मणिदिट्ठ तो त्ति । - पण्ण० प १७ । उ ५ । सू ५४ | पृ० ४५० २८० प्रज्ञापना लेश्या पद १७ । उद्देशक ४ की भुलावण । (न) कइ णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! छ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा - कण्हा, नीला, काऊ, तेऊ, पम्हा, सुक्का, एवं लेस्सापर्यं भाणियव्वं । -सम० पृ० ३७५ प्रज्ञापना लेश्या पद १७ की भुलावण । *६६२२ सिद्धांत ग्रन्थों से लेश्या सम्बन्धी पाठ :६६२२१ देवेन्द्रसूरि विरचित कर्म ग्रन्थों से : (क) लेश्या और कर्म प्रकृतियों का बंध : ओहे अट्ठारसयं आहारदुगूण आइलेस तिगे । तं तित्थोणं मिच्छे साणाइसु सव्वहिं ओहो | तेऊ नरयनवूणा, उजोयचड नरयबार विणु विणुनरयबार पहा, अजिणाहारा इमा सुक्का । मिच्छे || - तृतीय कर्म० गा २१,२२ (ख) लेश्या और गुणस्थान :--- तिसु दुसु सुकाइ गुणा, चड सग तेरत्ति बंध सामित्तं । देविंदसूरिलिहियं, नेयं कम्मत्थयं तथाहि Jain Education International सोउं ॥ - तृतीय कर्म० गा २४ लेसा तिन्नि पमत्तं, तेऊपम्हा उ अप्पमत्तंता । सुक्का जाव सजोगी, निरुद्धलेसो अजोगिन्ति ॥ - जिनवल्लभीय षडशीति गा० ७३ छसु सव्वा तेउतिगं, इगि छसु सुका अजोगि अल्लेसा । - चतुर्थ कर्म० गा ५० | पर्वार्ध For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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