Book Title: Leshya kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 337
________________ मनुष्यायु में एक नहीं है २६६ लेश्या-कोश पृष्ठ।पंक्ति अशुद्ध पृष्ठ|पंक्ति अशुद्ध शुद्ध ८८२३ लातंक लांतक २०४।३० मनुप्यायु मा२५ मनुप्य मनुष्य २०६८ तीयेच तिर्यंच ८६/११ गुणस्थान गुणस्थान के २०६।१६ कृष्णलेश्या कृष्णादि लेश्या ८६।१७ जीव में जीवों में २०६।१६ अपेक्षा अपेक्षा से ८६/२६ जीवों में जीव २१२।८ मेंए क ६०२६. एक लेश्या एक शुक्ललेश्या २१५८ कृययुग्म कृतयुग्म ६११ दोनो दोनों २१५/२१ उपयुक्त उपयुक्त १४११८ जधन्य जघन्य २२३/२४. उत्तर में हैं उत्तर में ६७/१२ वाणव्यंतर वानव्यं तर २२३१२४ नहीं हैं १८२१ वैमाणिक वैमानिक . २२४११७ सज्ञी संज्ञी १००।२३ जघन्य स्थिति जघन्यकालस्थिति २२४१२१ भाग देने भाग देने पर १००।२५ जीवनस्थान जीवस्थान २२४१२४ समान हैं समान है १०७।१७ योग्य जो जीवों योग्य जीवों २२५/१ निरन्त निरन्तर १०७।२४ तमप्रभापृथ्वी तमप्रभापृथ्वी के २२८२ राशीयुग्म राशियुग्म १११३० देवों में होने देवों में २३२६,१० परंपरोपन्न परंपरोपपन्न ११३।२६ जीवों से जीवों में २३८४,२८ किया हैं किया है ११४१२७ चेन्द्रिय पंचेंद्रिय २४७१२ निवृत्त निवृत्त १३६।२८ उत्पन्न योग्य उत्पन्न होने योग्य २४६६ इनके . इसके. १३६।३१ प्रथम के xxx प्रथम के तीन २४६।२१ शैलेशत्व शैलेशीत्व १४०1१६ योग्य होने योग्य २६४।२० उद्योतित उयोतित १४२।१५ होने योग्य योग्य होने योग्य २६८।१५ कर्कश कर्कशत्व १४६१ यावत यावत् २७०१३,१६ वर्ण वर्ण १५३१२६ जीव ___ एकेन्द्रिय जीव २७७||२८ ग्रेवेक १५६।२६ संबंध से सम्बंध में २७८१ अनुत्तरौ पपातिक अनुत्तरो१६३।२७ संख्यात लाख असंख्यात लाख पपातिक १६८।२३, देवी व देवी वा २७८१२ बकुस बकुश १६८२४ देवी व देवी वा २८०११७ और और १८७।२४ परंपराहरक परंपराहारक सर्वत्र १६०११२ बक्तव्यता वक्तव्यता सर्वत्र असंख्यात् असंख्यात १६११२५ ,अलेशी शुक्ललेशी, सर्वत्र मुहूर्त शुक्ललेशी, अलेशी सर्वत्र अन्तर्मुहूर्त १६३।२० क्योंकि जीव जीव सर्वत्र संमूर्छिम संमूछिम १६८२१ लेश्या में लेश्या से सर्वत्र वाणव्यंतर वानव्यंतर २००१२८ कोई आचार्य कई आचार्य सर्वत्र निग्रन्थ निर्ग्रन्थ २०२।१५ तधा तथा सर्वत्र मनुप्य ग्रेवेयक संख्यात् संख्यात मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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