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लेश्या -कोश
द्रव्यलेश्या अजीवोदय निष्पन्न है ( देखो ५११४ 1 यह जीवोदय - निष्पन्नता तथा अजीवोदय निष्पन्नता किस-किस कर्म के उदय से हैं - यह पाठ उपलब्ध नहीं हुआ है। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य का कहना है कि कृष्णादि तीन अप्रशस्त लेश्या - मोहकर्मोदयनिष्पन्न हैं तथा तेजो आदि तीन प्रशस्त लेश्या नामकर्मोदयनिष्पन्न हैं। विशुद्ध होती हुई लेश्या कर्मों की निर्जरा में सहायक होती है (देखो ६६ २ ) । टीकाकारों का कहना है
तत्र द्रव्यलेश्या
“कर्मनिस्यन्दो लेश्येति सा च द्रव्यभावभेदात् द्विधा, कृष्णादिद्रव्याण्येव भावलेश्या तु तज्जन्यो जीव परिणाम इति । "
"लिश्यते प्राणी कर्मणा यया सा लेश्या ।” यदाह - "श्लेष इव वर्णबन्धस्य . कर्मबंधस्थितिविधात्र्यः । "
- अभयदेवसूरि ( देखो '०५३१ ) अष्टानामपि कर्मणां शास्त्रे विपाका वर्ण्यन्ते, न च कस्यापि कर्म्मणो लेश्यारूपो विपाक उपदर्शितः ।
मलयगिरि ( देखो ०५३२ ) यद्यपि लेश्या कर्मनिष्यंदन रूप है तो भी अष्टकर्मों के विपाकों के वर्णन में आगमों में कहीं लेश्यारूपी विपाक का वर्णन नहीं है ।
श्यास्तु येषां भंते कषायनिष्यन्दो लेश्याः तन्मतेन कषायमोहनीयोदयजत्वाद् औदयिक्यः, यन्मतेन तु योगपरिणामो लेश्याः तदभिप्रायेण योगत्रयजनककर्मोदयप्रभवाः, येषां त्वष्टकर्मपरिणामो लेश्यास्तन्मतेन संसारित्वासिद्धत्ववद् अष्टप्रकारकर्मोदया इति ॥
- चतुर्थ कर्म० गा ६६ । टीका
जिनके मत में लेश्या कषायनिस्यंद रूप है उनके अनुसार लेश्या कषायमोहनीय कर्म के उदय जन्य औदयिक्य भाव है । जिनके मत में लेश्या योगपरिणाम रूप है उनके अनुसार जो कर्म तीनों योगों के जनक हैं वह उन कर्मों के उदय से उत्पन्न होनेवाली है। जिनके मत में लेश्या आठों कर्मों के परिणाम रूप है उनके मतानुसार वह संसारित्व तथा असिद्धत्व की तरह अष्ट प्रकार के कर्मोदय से उत्पन्न होनेवाली है।
कई आचार्यों का कथन है कि लेश्या कर्मबंधन का कारण भी है, निर्जरा का भी । कौन लेश्या कत्र बंधन का कारण तथा कब निर्जरा का कारण होती है, यह विवेचनीय प्रश्न है ।
६६ १६ लेश्या और अध्यवसाय :
लेश्या और अध्यवसाय का घनिष्ठ सम्बन्ध मालूम पड़ता है; क्योंकि जातिस्मरण आदि
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