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लेश्या-कोश
२०१ कृष्णलेशी द्वीपकुमार से नीललेशी द्वीपकुमार महाऋद्धिवाला, नीललेशी द्वीपकुमार से कापोतलेशी द्वीपकुमार महाऋद्धिवाला, कापोतलेशी द्वीपकुमार से तेजोलेशी द्वीपकुमार महाऋद्धिवाला होता है। कृष्णलेशी द्वीपकुमार सबसे अल्पऋद्धिवाला तथा तेजोलेशी द्वीपकुमार सबसे महाऋद्धिवाला होता है।
इसी प्रकार उदधिकुमार, दिशाकुमार, स्तनितकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, वायुकुमार तथा अग्निकुमार के विषय में वैसा ही कहना, जैसा द्वीपकुमार के विषय में कहा।
.८१ सलेशी जीव और बोधि :
सम्महसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही ॥ मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा कण्हलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ।।
-उत्त० अ ३६ । गा २५७, ५८ । पृ० १०६ सम्यग्दर्शन में अनुरक्त, निदान रहित, शुक्ललेश्या में अवगाढ़ होकर जो जीव मरते हैं वे परभव में सुलभबोधि होते हैं।
मिथ्यादर्शन में रत, निदान सहित, कृष्णलेश्या में अवगाढ़ होकर जो जीव मरते हैं वे परभव में दुर्लभबोधि होते हैं ।
८२ सलेशी जीव और समवसरण :'८२.१ सलेशी जीव और मतवाद ( दर्शन):__सलेस्सा गं भंते ! जीवा किं किरियावाई० पुच्छा ? गोयमा ! किरियावाई वि, अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि । एवं जाव सुक्कलेस्सा।
अलेस्सा णं भंते ! जीवा० पुच्छा ? गोयमा ! किरियावाई। नो अकिरियावाई नो अन्नाणियवाई, नो वेणइयवाई।
सलेस्सा णं भंते ! नेरइया किं किरियावाई? एवं चेव । एवं जाव काऊलेस्सा। xxx नवरं जं अत्थि तं भाणियव्वं सेसं न भन्नति । जहा नेरइया एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइया णं भंते ! कि किरियावाई० पुच्छा ? गोयमा ! नो किरियावाई, अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, नो वेणइयवाई। एवं पुढविकाइयाणं जं अस्थि तत्थ सव्वत्थ वि एयाई दो मज्झिल्लाई समोसरणाइं जाव
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