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लेश्या-कोश छारियन्भूया तत्तकवेल्लकन्भूया तत्ता समजोइ० भूया जाया यावि होत्था, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य, देवीओ य तं बलिचंचारायहागि इङ्गालभूयं, जाव-समजोइन्भूयं पासंति, पासित्ता भीया,उतत्था सुसिया, उव्विग्गा, संजायभया, सव्वओ समंता आधाति, परिधावेंति, अन्नमन्नस्स कायं समतुरंगेमाणा चिट्ठति, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य, देवीओ य ईसाणं देविदं, देवरायं परिकुव्वियं जाणित्ता, ईसाणस्स देविंदस्स, देवरन्नो तं दिव्वं देविडि, दिव्वं देवजुई, दिव्वं देवाणुभागं, दिव्वं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सपक्खि सपडिदिसिं ठिच्चा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्वाविंति, एवं वयासी :- अहोणं देवाणुप्पिएहिं दिव्वा देविड्डी, जाव अभिसमन्ना गया तं दिव्या णं. देवाणुप्पियाणं दिव्या देविड्डी, जाव लद्धा, पत्ता, अभिसमन्नागया, तं खामेमो देवाणुप्पिया! खमंतु देवाणुप्पिया ! [खमंतु मरिहंतु णं देवाणुप्पिया! णाइ भुज्जो २ एवंकरणयाएणंत्ति कटु एयमटुं सम्म विणएणं भुज्जो २ खामेंति, तए णं से ईसाणे देविंदे देवराया तेहिं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वेहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य एयमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो २ खामिए समाणे तं दिव्वं देविति, जाव तेयलेस्सं पडिसाहरइ ।
-भग० श ३ । उ १ । प्र १७ । पृ० ४४६ जब ईशान देवेन्द्र देवराज ने नीचे, समक्ष, सप्रतिदिशा में बलिचंचा राजधानी की तरफ देखा तब उसके दिव्य प्रभाव से वह बलिचंचा राजधानी अंगार जैसी, अग्निकण जैसी, राख जैसी, तपी हुई बालुका जैसी तथा अत्यन्त तप्त लपट जैसी हो गई। उससे बलिचंचा राजधानी में रहनेवाले अनेक असुरकुमार देव देवी बलिचंचा को अंगार यावत् तप्त लपट जैसी हुई देखकर, भयभीत हुए, त्रस्त हुए, उद्विग्न हुए, भयप्राप्त हुए, चारों तरफ दौड़ने लगे, भागने लगे आदि। और उन देव-देवियों ने यह जान लिया कि ईशान देवेन्द्र देवराज कुपित हो गया है और वे उस ईशान देवेन्द्र देवराज की दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति, दिव्य देवप्रभाव तथा दिव्यतेजोलेश्या सह नहीं सके। तब वे ईशान देवेन्द्र देवराज के सामने, ऊपर, समक्ष, सप्रति दिशा में बैठकर करबद्ध होकर नतमस्तक होकर ईशान देवेन्द्र देवराज की जय-विजय बोलने लगे तथा क्षमा मांगने लगे। तब उस ईशानेन्द्र ने दिव्य देवऋद्धि यावत् निक्षिप्त तेजोलेश्या को वापस खींच लिया।
नोट :-जैसे साधु की तपोलब्धि से प्राप्त तेजोलेश्या अंग-बंगादि १६ देशों को भस्मीभूत करने में समर्थ होती है ( देखो २५.४ ) वैसे ही देवताओं की तेजोलेश्या भी प्रखर, तेज वा तापवाली होती है। ऐसा उपयुक्त वर्णन से प्रतीत होता है।
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