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लेश्या - कोश
'६६ १५ तेजससमुद्घात और तेजोलेश्या-लब्धि :
तैजससमुद्घातस्तेजोलेश्याविनिर्गमकाले तैजसनामकर्म पुद्गलपरिशातहेतुः । - पण्ण० प ३६ | गा १ । टीका असुरकुमारादीनां दशानामपि भवनपतिनां तेजोलेश्यालब्धिभावात् आद्याः पंच समुद्घाताः । xxx पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानामाद्याः पंच, केषांचित्तेषां तेजोलब्धेरपि भावात्, मनुष्याणाम् सप्त, मनुष्येषु सर्वसम्भवात्, व्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानामाद्याः पंच, वैक्रियतेजोलब्धिभावात् ।
- पण्ण० प ३६ | सू १ | टीका
तेजोलेश्या लब्धि वाला जीव ही तैजससमुद्घात करने में समर्थ होता है 1 तिर्यच पंचेन्द्रिय, मनुष्य तथा देवों में तेजोलेश्या - लब्धि होती है । तैजससमुद्घात करने के समय तेजोलेश्या निकलती है तथा उसके निर्गमन काल में तैजस नामकर्म का क्षय होता है । ६६२६ लेश्या और कषाय :
कषायपरिणामश्चावश्यं लेश्यापरिणामाविनाभावी, तथाहि - लेश्यापरिणामः योगिकेवलिनमपि यावद् भवति, यतो लेश्यानां स्थितिनिरूपणावसरे लेश्याध्ययने शुक्ललेश्याया जघन्या उत्कृष्टा च स्थितिः प्रतिपादिता
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मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ । नवहिं वरसे हिं ऊणा नायव्व सुक्कलेसाए ॥ इति
सा च नववर्षोनपूर्वकोटिप्रमाणा उत्कृष्टा स्थितिः शुक्ललेश्यायाः सयोगिकेवलिन्युपपद्यते, नान्यत्र, कषायपरिणामस्तु सूक्ष्मसंपरायं यावद् भवति, ततः कषायपरिणामो लेश्यापरिणामाऽविनाभूतो लेश्यापरिणामश्च कषायपरिणामं विनापि भवति, ततः कषायपरिणामानन्तरं लेश्यापरिणाम उक्तः, न तु लेश्यापरिणामानन्तरं कषायपरिणामः ।
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-- पण्ण० प १३ । सू० २ । टीका
कषाय और लेश्या का अविनाभावी सम्बन्ध नहीं है । जहाँ कषाय है वहाँ लेश्या अवश्य है लेकिन जहाँ लेश्या है ( अन्ततः जहाँ शुक्ललेश्या है ) वहाँ कषाय नहीं भी हो सकता है । यथा --- केवलज्ञानी के कषाय नहीं होता है तो भी उसके लेश्या के परिणाम होते हैं, यद्यपि वह शुक्ललेश्या ही होती है । यह शुक्ललेश्या की उत्कृष्ट स्थिति - नव वर्ष कम पूर्व कोटि प्रमाण से प्रतिपादित होती है क्योंकि यह स्थिति सयोगी केवली में ही सम्भव है, अन्यत्र नहीं ; और सयोगी केवली अकषायी होते हैं । अतः यह कहा जाता है कि लेश्यापरिणाम कषाय परिणाम के बिना भी होता है ।
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