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६० लेश्या और विविध विषय :
६१ लेश्याकरण :
( कइविहं णं भंते! लेस्साकरणे पन्नत्ते ? गोयमा ! ) लेस्साकरणे छव्विहे xxx एए सव्वे नेरइयादी दण्डगा जाव वैमाणियाणं जस्स जं अत्थि तं तस्स सव्वं भाणियव्वं ।
लेश्या - कोश
- भग० श १६ | उ ६ | प्र ४ । पृ० ७८६
२२ करणों में 'लेश्याकरण' भी एक है । लेश्याकरण छः प्रकार का है, यथा-कृष्णलेश्याकरण यावत् शुक्ललेश्याकरण । सभी जीव दण्डकों में लेश्याकरण कहना लेकिन जिसमें जितनी लेश्या हो उतने लेश्याकरण कहने । टीकाकर ने 'करण' की इस प्रकार व्याख्या की है
तत्र क्रियतेऽनेनेति करणं - क्रियायाः साधकतमं कृतिर्वा करणं - क्रियामात्रं, नन्वस्मिन् व्याख्याने करणस्य निर्वृत्तश्च न भेदः स्यात्, निवृत्त रपि क्रियारूपत्वात्, नैवं, करणमारम्भक्रिया निवृत्तिस्तु कार्यस्य निष्पत्तिरिति ।
जिसके द्वारा किया जाय वह करण । क्रिया का साधन अथवा करना वह करण । इस दूसरी व्युत्पत्ति के प्रमाण से करण व निवृत्ति एक हो गई ऐसा नहीं समझना, क्योंकि करण आरंभिक क्रिया रूप है तथा निवृत्ति कार्य की समाप्ति रूप है 1
.-६२ लेश्यानिवृत्तिः
विहाणं भंते! लेस्सानिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! छव्विहा लेस्सा निव्वत्ती पन्नत्ता, तंजहा - कण्हलेस्सानिव्वन्ती जाव सुक्कलेस्सा निव्वत्ती । एवं जाव वैमाणियाणं जस्स जइ लेस्साओ तस्स तत्तिया भाणियव्वा ) ।
-भग० श १६ | उ ८ | प्र १६ | पृ० ७८८ छः श्यानिवृत्ति होती हैं यथा कृष्णलेश्यानिवृत्ति यावत् शुक्ललेश्यानिवृत्ति । इसी प्रकार दण्डक के सभी जीवों के लेश्यानिवृत्ति होती हैं । जिस दण्डक में जितनी लेश्या होती है उसमें उतनी लेश्यानिवृत्ति कहना । टीकाकार ने निवृत्ति की व्याख्या इस प्रकार की है :
निर्वर्तनं - निर्वृतिर्निष्पत्तिजीर्वस्यै केन्द्रियादितया निवृत्तिजीर्वनिर्वृत्तिः ।
निवृत्ति-निर्वर्तन अर्थात् निष्पन्नता । यथा जीव का एकेन्द्रियादि रूप से निवृत्त होना जीवनिवृत्ति । लेश्यानिवृत्ति का अर्थ इस प्रकार किया जा सकता है- द्रव्यलेश्या
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