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लेश्या - कोश
मोहवाला, लेश्यावाला, शरीरवाला तथा शरीर से जो मुक्त नहीं हुआ हो ऐसे शरीरयुक्त देव जीव में कृष्णत्व यावत् शुक्लत्व, सुगंधत्व, दुर्गन्धत्व, तिक्तत्व यावत् मधुरत्व, कर्कशत्व यावत् रूक्षत्व होता है । इसी हेतु से देव अरूपी ( अमूर्तरूप ) विकुर्वण करने में असमर्थ हैं ।
सच्चेवणं भंते! से जीवे पुव्वामेव अरूवी भवित्ता पभू रूविं विउव्वित्ताणं चिट्ठित्त ? नो इण समट्ठ े ( से केणटुणं) जाव चिट्ठित्तए ? गोयमा ! अहं एवं जाणामि जाव जण तहागयस्स, जीवस्स अरूवस्स, अकम्मस्स, अरागस्स, अवेयस्स, अमोहस्स, अलेसरस, असरीरस्स, ताओ सरीराओ विप्पमुक्कस्स नो एवं पन्नायक, तंजहा - कालत्ते वा जाव - लुक्खत्ते वा से तेणणं जावचिट्ठित्तए वा ।
-भग० श० १७ । उ२ । प्र ११ । पृ० ७५७
महर्द्धिक यावत् महाक्षमतावाले देव भी यदि अरूपत्व को प्राप्त हो गये हों तो वे मूर्त रूप का निर्माण करने में समर्थ नहीं हैं; क्योंकि अरूपवाला, अकर्मवाला, अवेदवाला, मोहरहित, अलेश्यावाला, शरीरवाला तथा शरीर से जो मुक्त हुआ हो- ऐसे अशरीरी जीव ( देव ) में कृष्णत्व यावत् शुक्लत्व, सुगंधत्व, दुर्गन्धत्व, तिक्तत्व यावत् मधुरत्व, कर्कश यावत् रूक्षत्व नहीं होता है । इस हेतु से अरूपत्व को प्राप्त जीव मूर्तरूप विकुर्वण करने में असमर्थ होता है ।
६६१२ वैमानिक देवों के विमानों का वर्ण, शरीरों का वर्ण तथा लेश्या
सोहम्मीसाणेसु णं भंते! विमाणा कश्वण्णा पन्नता ? गोयमा ! पंचवण्णा पन्नत्ता, तंजहा कण्हा नीला लोहिया हालिद्दा सुकिल्ला, सणकुमारमाहिंदेसु चडवण्णा नीला जाव सुकिला, बंभलोगलंतएसुवि तिवण्णा लोहिया जाव सुकिल्ला, महासुक्क सहस्सारेसु दुवण्णा - हालिदा य सुकिल्ला य; आणयपाणयारणच्चुएस सुकिल्ला, गेविज्जविमाणा सुकिला अणुत्तरोववाश्यविमाणा परमसुकिल्ला वण्णेणं
पन्नता ।
-- जीवा० । प्रति ३ । उ १ । सू २१३ । पृ० २३७
टीका -- सौधर्मेशानयोर्भदन्त ! कल्पयोर्विमानानि कति वर्णानि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह गौतम ! पंच वर्णानि, तद्यथा - कृष्णानि नीलानि लोहितानि हारिद्राणि शुक्लानि, एवं शेषसूत्राण्यपि भावनीयानि, नवरं सनत्कुमार माहेन्द्रयोश्चतुर्वर्णानि कृष्णवर्णाभावात् ब्रह्मलोकलान्तकयोस्त्रिवर्णानि कृष्णनीलवर्णाभावात्, महाशुक्र
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