Book Title: Leshya kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 289
________________ २४८ लेण्या-कोश लोक, अलोक, लोकान्त, अलोकान्त आदि शाश्वत भावों की तरह लेश्या भी शाश्वत भाव है। पहले भी है, पीछे भी है ; अनानुपूर्वी है, इनमें कोई क्रम नहीं है। रोहक अणगार के प्रश्न करने पर मुर्गी और अण्डे का उदारहण देकर भगवान ने आगे-पीछे के प्रश्न को समझाया है। 'रोहा ! से णं अंडए कओ ? 'भयवं ! कुक्कुडीओ!' 'सा णं कुक्कुडी को ?' 'भंते ! अंडयाओ।' -भग० श १ । उ ६ । प्र २१८ । पृ० ४०३ अण्डा कहाँ से आया ? मुर्गी से। मुगी कहाँ से आयी ? अण्डे से । दोनों पहले भी हैं, दोनों पीछे भी है। दोनों शाश्वत भाव हैं। दोनों अनानुपूर्वी है, आगे पीछे का क्रम नहीं है । लेश्या भी शाश्वत भाव है ; किसी अन्य शाश्वत भाव की अपेक्षा इसका पहिलेपीछे का क्रम नहीं है। '६५ लेश्या और ध्यान :६५.१ रौद्र ध्यान : कावोयनीलकाला, लेसाओ तीव्व संकिलिट्ठाओ। रोहमाणोवगयस्स, कम्मपरिणामजणियाओ ॥ रौद्र ध्यान में उपगत जीवों में तीव्र संक्लिष्ट परिणाम वाली कापोत, नील, कृष्ण लेश्याएँ होती हैं। '६५.२ आर्त्तभ्यान : कावोयनीलकाला, लेसाओ णाइसंकिलिट्ठाओ। अट्टज्माणोवगस्स, कम्मपरिणामजणियाओ ।। टीका-कापोतनीलकृष्णलेश्याः। किं भूताः ? नातिसंक्लिष्टा रौद्रध्यान लेश्यापेक्षया नातीवाशुभानुभावाः, भवन्तीति क्रिया। कस्येत्यत आह -आर्तध्यानोपगतस्य, जन्तोरिति गम्यते । किं निबंधना एताः ? इत्यत आह-कर्मपरिणामजनिताः तत्र 'कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात् , परिणामो य आत्मनः। स्फटिकस्येव तत्रायं लेश्याशब्दः प्रयुज्यते ॥ एताश्च कर्मोदयायत्ता इति गाथार्थः । -आव० अ ४ । टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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