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लेश्या-कोश उपरोक्त दोनों दृष्टांत लेश्या परिणामों को समझने के लिये स्थूल दृष्टान्त हैं। ये दोनों दृष्टान्त दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में प्रचलित हैं। अतः प्रतीत होता है कि ये दृष्टान्त परम्परा से प्रचलित हैं ।
•१८ जैनेतर ग्रन्थों में लेश्या के समतुल्य वर्णन :८.१ महाभारत में :
लेश्या से मिलती भावना महाभारत के शान्ति पर्व की "वृत्रगीता" में मिलती है जहाँ जगत् के सब जीवों को वर्ण-रंग के अनुसार छः भेदों में विभक्त किया गया है ।
षड् जीववर्णाः परमं प्रमाणं कृष्णो धूम्रो नीलमथास्य मध्यम् । रक्त पुनः सह्यतरं सुखं तु हारिद्रवर्ण सुसुखं च शुक्लम् ।।
-महा० शा० पर्व । अ २८० । श्लो ३३ जीव छः प्रकार के वर्णवाले होते हैं, यथा-कृष्ण, धूम्र, नील, रक्त, हारिद्र तथा शुक्ल । कृष्ण वर्ण वाले जीव को सबसे कम सुख, धूम्र वर्ण वाले जीव को उससे अधिक सुख होता है तथा नील वर्ण वाले जीव को मध्यम सुख होता है। रक्त वर्ण वाले जीव का सुखदुःख सहने योग्य होता है। हारिद्रवर्ण (पीले वर्ण) वाले जीव सुखी होते हैं तथा शुक्लवर्ण वाले परम सुखी होते हैं। इस प्रकार जीवों के छः वर्णों का वर्णन परम प्रमाणित माना जाता है।
xxx तत्र यदा तमस आधिक्यं सत्त्वरजसोन्यूनत्वसमत्वे तदा कृष्णो वर्णः। अन्त्ययोवैपरीत्ये धूम्रः। तथा रजस आधिक्ये सत्त्वतमसोन्यूनत्वसमत्वे नीलवर्णः। अन्त्ययोपरीत्ये मध्यं मध्यमो वर्णः। तच्च रक्त लोकानां सह्यतरं लोकानां प्रवृत्तिकुशलानाममूढ़ानां साहसिकानां सत्त्वस्याधिक्ये रजस्तमसोन्यूनत्वसमत्वे हारिद्रः पीतवर्णस्तच्च सुखकरं । अन्त्ययोवैपरीत्ये शुक्लं तच्चात्यंतसुखकरंxxx।
-महा० शा० पर्व । अ २८० । श्लो ३३ पर नील टीका जब तमोगुण की अधिकता, सत्त्वगुण की न्यूनता और रजोगुण की सम अवस्था हो तब कृष्णवर्ण होता है। तमोगुण की अधिकता, रजोगुण की न्यूनता और सत्त्वगुण की सम अवस्था होने पर धूम्र वर्ण होता है। रजोगुण की अधिकता, सत्त्वगुण की न्यूनता और तमोगुण की सम अवस्था होने पर नील वर्ण होता है। इसी में जब सत्त्वगुण की सम अवस्था और तमोगुण की न्यूनावस्था हो तो मध्यम वर्ण होता है। उसका रंग लाल होता है। जब सत्त्वगुण की अधिकता, रजोगुण की न्यूनता और तमोगुण की सम अवस्था हो तो हरिद्रा के समान पीतवर्ण होता है। उसीमें जब रजोगुण की सम अवस्था और तमोगुण की न्यूनता हो तो शुक्लवर्ण होता है।
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