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लेश्या-कोश पच्चस्सोसि। भगवा एतदवोच-“कतमा चानन्द, छलभिजातियो ? इधानन्द, एकच्चो कण्हाभिजातियो समानो कण्हं धम्मं अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो कण्हाभिजातियो समानो सुक्कं धम्मं अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो कण्हाभिजातियो समानो अकण्हं असुक्कै निब्बानं अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो सुक्काभिजातियो समानो कण्हं धम्मं अभिजायति। इध पनानन्द, एकच्चो सुक्काभिजातियो समानो सुक्कं धम्मं अभिजायति । इध पनानन्द, एकच्चो सुक्काभिजातियो समानो अकण्हं असुक्कं निब्बानं अभिजायति ।
-अंगुत्तरनिकाय । ६ महावग्गो। ३ छलाभिजाति सुत्तं । भगवान बुद्ध भी वर्ण की अपेक्षा से छ अभिजातियाँ बतलाते हैं किन्तु कृष्ण और शुक्ल वर्ण के आधार पर। यथा, (१) कृष्ण अभिजाति कृष्ण धर्म करने वाली, (२) कृष्ण अभिजाति शुक्ल धर्म करने वाली, (३) कृष्ण अभिजाति अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण धर्म करने वाली, (४) शुक्ल अभिजाति कृष्ण धर्म करने वाली, (५) शुक्ल अभिजाति शुक्ल धर्म करने वाली तथा (६) शुक्ल अभिजाति अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण धर्म करने वाली। १८३ पातंजल योगदर्शन में :
__ योगी के कर्म तथा दूसरों का चित्त कृष्ण, अशुक्ल-अकृष्ण तथा शुक्ल ऐसा त्रिविध प्रकार का होता है, ऐसा पातंजल योगदर्शन में वर्णित है :-- कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्त्रिविधमितरेषां ।
-पायो० पाद ४। सू७ यह त्रिविध वर्ण षड्विध लेश्या, वर्ण अथवा जाति का संक्षिप्त रूपान्तर मालूम होता है।
६६ लेश्या सम्बन्धी फुटकर पाठ :६६.१ भिक्षु और लेश्या :गुत्तो वईए य समाहिपत्तो, लेसं समाहट्टु परिवएज्जा।
-सूय • श्रु १ । अ १० । गा १५ । पृ० १२५ भिक्षु वचन गुप्ति तथा समाधि को प्राप्त होकर लेश्या ( परिणामों) को समाहित करके संयम में विहरे।
तम्हा एयासि लेसाणं, अणुभावे वियाणिया। अप्पसत्थाओ वज्जित्ता, पसत्थाओऽहिहिए मुणी ॥
-उत्त० अ ३४ । गा ६१ । पृ० १०४८
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