________________
२३०
लेश्या - कोश
सयं भवंति रासीजुम्मसयं । जाव सुक्कलेस्सा सुक्कपक्खियरासीजुम्म कलिओगवेमाणिया जाव अंत करेंति ? नो इणट्ट समझे ।
भग० श ४१ । उ १४१ से १६६ । पृ० ६३८ कृष्णपाक्षिक राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में भी अभवसिद्धिक राशियुग्म जीवों की तरह अट्ठाईस उद्देशक कहने ।
यावत् शुक्लपाक्षिक राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में भी भवसिद्धिकराशियुग्म जीवों की तरह अट्ठाईस उद्देशक कहने ।
-८८ सलेशी जीव का आठ पदों से विवेचन :
[ यहाँ पर सलेशी जीव का निम्नलिखित आठ पदों की अपेक्षा से विवेचन हुआ यथा - (१) भेद, (२) उपभेद, (३) श्रेणी तथा क्षेत्र की अपेक्षा से विग्रह गति, (४) स्थान ( उपपातस्थान, समुद्घातस्थान, स्वस्थान ), (५) कर्म प्रकृति की सत्ता, बंधन, वेदन, (६) कहाँ से उपपात, (७) समुद्घात, (८) तुल्य अथवा भिन्न स्थिति की अपेक्षा तुल्य विशेषाधिक अथवा भिन्न विशेषाधिक कर्म का बंधन । लेकिन भगवती सूत्र के ३४ वें शतक में केवल एकेन्द्रिय जीव का विवेचन है, अन्य जीवों का इन आठ पदों की अपेक्षा से विवेचन नहीं मिलता है । ]
१सलेशी एकेन्द्रिय जीव का आठ पदों से विवेचन :
विहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नता ? गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता, भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सए गिंदियसए, जाव वणस्सइकाइयत्ति ।
कण्हलेस अपज्जत्तसुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले० ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव 'लोगचरिमंते' त्ति । सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु चेव उववाएयव्वो ।
कहिं णं भंते! कण्हलेस्स अपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता ? ( गोयमा ! ) एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद सओ जाव तुल्लट्ठिश्य त्ति । एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमं सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्दे सगा भाणियव्वा ।
एवं नीललेस्सेहि वि तश्यं सयं ।
काउलेस्से हि विसयं । एवं चेव चउत्थं सयं ।
1
Jain Education International
-
भग० श ३४ । श २ से ४ | पृ० ६२४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org