Book Title: Leshya kosha Part 1
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 272
________________ लेश्या-कोश २३१ कृष्णलेशी एकेन्द्रिय पाँच प्रकार के अर्थात् कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक यावत् कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक होते हैं। इनमें प्रत्येक के पर्याप्तसूक्ष्म, अपर्याप्तसूक्ष्म, पर्याप्तबादर, अपर्याप्तबादर चार भेद होते हैं । (देखो भग० श ३३ । श २ )। कृष्णलेशी अपर्याप्तसूक्ष्म पृथ्वीकायिक की श्रेणी तथा क्षेत्र की अपेक्षा विग्रहगति के पद आदि औधिक उद्देशक में जैसा कहा वैसा रत्नप्रभा नारकी के पूर्वलोकांत से यावत् लोक के चरमांत तक समझना । सर्वत्र कृष्णलेश्या में उपपात कहना । - कृष्णलेशी अपर्याप्तबादर पृथ्वीकायिकों के स्थान कहाँ कहे हैं ? इस अभिलाप से औधिक उद्देशक में जैसा कहा वैसा स्थान पद से यावत् तुल्यस्थिति तक समझना। ___इस अभिलाप से जैसा प्रथम श्रेणी शतक में कहा वैसा ही द्वितीय श्रेणी शतक के ग्यारह उद्देशक (औधिक यावत् अचरम उद्दशक ) कहना। - इसी प्रकार नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में तीसरा श्रेणी शतक कहना। इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले एकेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में चौथा श्रेणी शतक कहना। ___कइविहा गं भंते ! कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिया पन्नत्ता ? एवं जहेव ओहियउद्देसओ। ... कइविहा णं भंते ! अणंतरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता ? जहेव अणंतरोववन्नउद्देसओ ओहिओ तहेव । कइविहा णं भंते ! परंपरोववन्ना कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा परंपरोववन्ना कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिया पन्नत्ता, ओहिओ भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइय ति। परंपरोववन्नकण्हलेस्सभवसिद्धियअपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए० एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ उद्दसओ जाव 'लोयचरिमंते' त्ति । सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु भवसिद्धिएसु उववाएयव्वो। कहिं णं भंते ! परंपरोववन्नकण्हलेस्सभवसिद्धियपजत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता ? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ उद्दसओ जाव 'तुल्लट्ठिइय' त्ति। एवं एएणं अभिलावेणं कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि तहेव एकारसउद्दे सगसंजुत्तं छ8 सयं । - नीललेस्सभवसिद्धियएगिदिएसु सयं सत्तमं । एवं काऊलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि अट्रमं सयं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338