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लेश्या -कोश
पढमसमय कण्हलेस कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया of भंते! कओ उववज्जंति० ? जहा पढमसमयउद्द सओ । नवरं ते णं भंते! जीवा कण्हलेस्सा ? हंता कण्हलेस्सा, सेसं तं चेव ।
एवं जहा ओहियसर एक्कारस उद्दे सगा भणिया तहा कण्हलेस्ससए वि एक्कारस उद्द सगा भाणियव्वा । पढमो तइओ पंचमो य सरिसगमा, सेसा अट्ठ विसरिस - गमा। नवरं चत्थ छट्ठ- अट्टम - दसमेसु उववाओ नत्थि देवस्स |
एवं नीललेस्से हि विसयं कण्हलेस्ससयसरिसं, एक्कारस उद्दे सगा तहेव । एवं कालेस्से हि विसयं कण्हलेस्ससयसरिसं ।
- भग० श ३५ । श २ से ४ । पृ० ६२६ कृष्णलेशी कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय का उपपात औधिक उद्देशक ( भग० श ३५ । श १ । उ १ ) की तरह जानना । लेकिन भिन्नता यह है कि वे कृष्णलेशी हैं। वे कृष्णलेशी कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं । इसी प्रकार स्थिति के सम्बन्ध में जानना । बाकी सब यावत् पूर्व में अनंत बार उत्पन्न हुए हैं-- वहाँ तक जानना । इसी प्रकार सोलह युग्म कहने ।
प्रथमसमय के कृष्णलेशी कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय का उपपात प्रथम समय के उद्दे शक ( भग० श ३५ । श १ । उ २ ) की तरह जानना । लेकिन वे कृष्णलेशी हैं बाकी सब वैसे ही जानना । जिस प्रकार औधिक शतक में ग्यारह उद्देशक कहे वैसे ही कृष्ण
शी शतक में भी ग्यारह उद्देशक कहने। पहले, तीसरे, पाँचवें के गमक एक समान हैं । बाकी आठ के गमक एक समान हैं। लेकिन चौथे, छट्ठे, आठवें, दशवें उद्देशक में देवों का उपपात नहीं होता है ।
नीलेश एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के कृष्णलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के समान ग्यारह उद्देशक कहने ।
कपोलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के कृष्णलेशी एकेन्द्रिय महायुग्म शतक के समान ग्यारह उद्देशक कहने ।
कण्हलेस्सभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ (हिंतो ) उववज्जंति० ? एवं कण्हलेस्सभव सिद्धियएगिदिएहि वि सयं बिइयस्य कण्हलेस सरिसं भाणियव्वं ।
एवं नीललेस्सभवसिद्धियएगिंदियएहि वि सयं ।
एवं काऊलेस्सभवसिद्धियएगिदियएहि वि तहेव एक्कारसउद सगसंजुत्त सयं । एवं एयाणि चत्तारि भवसिद्धियसयाणि । चउसु वि सरसु सव्वे पाणा जाव उववन्नपुव्वा ? नो
मट्ठे ।
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